अगर इस मामले के सच को छुपाया गया, दबाया गया तो तूफान खड़ा हो जाएगा। हमारी judiciary को और ज़्यादा चोट लगेगी। इसका मतलब ये लगाया जाएगा कि जज कुछ भी कर लें, उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
अगर इस बात में ज़रा भी सच्चाई है कि जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कैश मिला, तो ये नोट मेहनत की कमाई तो नहीं हो सकते। ये सिर्फ रिश्वत का माल हो सकता है, लेकिन रिश्वत लेना जितना बड़ा गुनाह है, उसे रफा-दफा करने की कोशिश करना भी उतना ही बड़ा अपराध है। अगर जज साहब के घर में आग न लगती, फायर ब्रिगेड न आती, तो ये कैश कभी पकड़ा ही नहीं जाता। अगर ये खबर Times Of India में न छपती, तो पब्लिक को पता ही नहीं चलता। अगर टीवी चैनल्स ने इसे Highlight न किया होता, तो मामला सामने आने से पहले ही दबा दिया जाता।
घटना होली के दिन हुई। सुप्रीम कोर्ट के ज़्यादातर Judges Shocked थे। उनका पहला प्रयास ये नहीं था कि जज के खिलाफ एक्शन लिया जाए, कैश मिलने के evidence को सील किया जाए, जज को कोर्ट attend करने से रोका जाए। लगता ये है कि पहले दिन से ही पहली कोशिश इस मामले पर लीपापोती करने की थी। इसलिए नहीं कि Collegium corrupt जज को बचाना चाहता था, इसलिए नहीं कि जस्टिस वर्मा को क्लीन चिट देने का इरादा था, मकसद था judiciary को बदनामी से बचाना। जज साहिबान को लगता था कि ये मामला पब्लिक के सामने आया तो लोगों का judiciary से विश्वास उठ जाएगा। एक जज के चक्कर में सब पर उंगलियां उठेंगी। जो बातें अब तक दबी ज़बान से कही जाती हैं, वो खुलेआम कही जाएंगी।