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दुर्ग में जनजाति समाज के योगदान विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, डॉ. निवेदिता वर्मा की पुस्तक ‘जनजातीय संस्कृति’ का विमोचन

दुर्ग। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के इतिहास विभाग द्वारा भारतीय इतिहास में जनजाति समाज के योगदान विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का उद्घाटन समारोह 05 मार्च 2025 को संपन्न हुआ, जिसमें देशभर से इतिहास विषय के विद्वानों, शोधार्थियों और शिक्षाविदों ने भाग लिया।

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उद्घाटन सत्र एवं अतिथियों के विचार
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग के कुलपति एवं दुर्ग संभाग के संभागायुक्त सत्यनारायण राठौर (आईएएस) थे। उनके साथ अनेक प्रतिष्ठित विद्वानों और शिक्षाविदों ने अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर कुलपति श्री सत्यनारायण राठौर ने जनजातीय समाज की अत्यंत समृद्ध संस्कृति और गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जनजातीय समुदायों ने भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ. रविंद्र शर्मा, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने जनजातीय समाज के ऐतिहासिक योगदान पर गहन विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि भारत की समृद्ध सभ्यता और संस्कृति में जनजातीय समुदायों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। विशिष्ट अतिथि डॉ. आभा पाल, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय एवं अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद ने भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए शोध और अध्ययन आवश्यक हैं। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अजय सिंह, इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार पांडे, एवं डॉ. के.के. अग्रवाल, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग सहित कई प्रतिष्ठित शिक्षाविदों और विद्वानों ने भी जनजातीय समाज की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर पर अपने विचार रखे।

डॉ. निवेदिता वर्मा की पुस्तक जनजातीय संस्कृति का विमोचन
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान इतिहास की शोधार्थी डॉ. निवेदिता वर्मा द्वारा लिखित पुस्तक जनजातीय संस्कृति का विमोचन कुलपति श्री सत्यनारायण राठौर द्वारा किया गया। इस अवसर पर डॉ. रविंद्र शर्मा, डॉ. आभा पाल, डॉ. अजय सिंह, डॉ. अनिल पांडे सहित अन्य विद्वान उपस्थित रहे। डॉ. निवेदिता वर्मा की यह पुस्तक उनके शोध कार्य पर आधारित है। उल्लेखनीय है कि भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने उनके इस शोध कार्य के लिए ‘स्टडी कम ट्रैवल ग्रांटÓ प्रदान की थी, साथ ही शोध कार्य के उपरांत ‘थीसिस पब्लिकेशन ग्रांटÓ भी उन्हें प्राप्त हुआ।इस पुस्तक का प्रकाशन देश की ख्यातिलब्ध ‘रावत पब्लिकेशन, जयपुरÓ के द्वारा किया गया है।

बस्तर की जनजातीय संस्कृति पर विशेष अध्ययन
लेखिका डॉ. निवेदिता वर्मा ने बताया कि उनकी पुस्तक बस्तर की पुरातन किंतु समृद्ध जनजातीय संस्कृति पर केंद्रित है। इसमें बस्तर की सांस्कृतिक परंपराओं, जीवनशैली, सामाजिक संरचना और ऐतिहासिक तथ्यों का सूक्ष्म अध्ययन किया गया है। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में भारतीय तथा वैश्विक स्तर पर जनजातीय संस्कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया गया है, जिससे बस्तर की जनजातीय संस्कृति की अद्वितीयता को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।

राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों का योगदान
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में विभिन्न राज्यों से आए शोधार्थियों, शिक्षाविदों और इतिहासकारों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में जनजातीय समाज की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक भूमिका पर विस्तार से चर्चा की गई। इस कार्यक्रम का आयोजन शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के इतिहास विभाग द्वारा किया गया, जिसमें महाविद्यालय के संकाय सदस्यों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने सक्रिय भागीदारी की।इस संगोष्ठी के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ कि जनजातीय समाज भारतीय इतिहास की एक अविभाज्य एवं महत्वपूर्ण इकाई है, जिसकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना आज के समय की महती आवश्यकता है।

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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