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Gustakhi Maaf: उत्तराखंड में अब लिव-इन भी विवाह

-दीपक रंजन दास
विवाह संस्कारों में आखिर होता क्या है? दो प्राप्त वय स्त्री पुरुष समाज को बताकर एक साथ रहने लगते हैं। संतान उत्पन्न करते हैं और उन्हें अपना नाम देते हैं। उनका पालन पोषण करते हैं। समाज को बताने का यह तरीका कुछ भी हो सकता है। भविष्य पुराण के अनुसार विवाह के आठ प्रकार हैं। ब्रह्म, देव, आर्ष, प्रजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पैशाचिक विवाह। ब्रह्म विवाह को उत्तम माना गया है जिसमें कुल-गोत्र आदि देखकर विवाह कराया जाता है। देव विवाह, आर्ष विवाह और प्रजापत्य विवाह में परिवार की बड़ी भूमिका होती है। विवाह सहमति और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संपन्न होता है। यही चार प्रकार के विवाह सबसे अधिक प्रचलन में है। गंधर्व विवाह में स्त्री-पुरुष आपसी पसंद एवं सहमति से विवाह करते हैं। यह प्रेम विवाह है जिसे समाज मान्यता देता है। असुर विवाह में कन्या के पिता को धन-संपत्ति देकर पत्नी हासिल की जाती है। इसमें कन्या की सहमति को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती। यह प्रथा आज भी कुछ राज्यों की प्रमुख प्रथा है। राक्षस विवाह कन्या का अपहरण कर बलपूर्वक किया जाता है। पैशाचिक विवाह में सोई हुई या नशे के आगोश में खोई युवती से संबंध बनाकर उससे जबरिया विवाह किया जाता है। इसमें कन्या की सहमति नहीं होती। राक्षस विवाह और पैशाचिक विवाह गैरकानूनी है। वैसे तो विवाह के बाद उसका पंजीयन कराने का भी प्रावधान है पर आज भी बड़ी संख्या में वैदिक रीति रिवाज से विवाह करने वाले पंजीयन जैसी प्रक्रिया को किसी खातिर में नहीं लाते। राशन कार्ड, ईएसआईसी कार्ड, बैंक और बीमा में नॉमिनी के रूप में नाम दर्ज करवा देना ही काफी होता है। साथ रहने की घोषणा को यदि विवाह मान लें तो उत्तराखंड में अब एक और तरह के विवाह की नींव रख दी गई है। यहां लिव इन में रह रहे कपल्स को अपनी घोषणा करनी पड़ेगी अर्थात सरकार के पास इसका पंजीयन कराना होगा। अर्थात रेंट और स्पेस शेयर करने के लिए लिव इन में रह रहे कपल्स को भी अब रिलेशनशिप में रहना दर्शाना होगा। दरअसल, समाज का एक बड़ा हिस्सा लिव इन रिलेशनशिप के खिलाफ है। सरकार के इस फैसले से उनके जख्मों पर मलहम लग जाएगा। इसके अलावा समाज का कोई हित सधता हुआ फिलहाल तो दिखाई नहीं देता। लिव इन के खिलाफ बोलने वाले कहते हैं कि इसमें कमिटमेंट नहीं होता। कोई भी कभी भी इस रिश्ते को तोड़कर जा सकता है। ऐसे जोड़ों के बीच हिंसा हो सकती है, अपराध घटित हो सकते हैं। तो क्या अग्नि को साक्षी रखकर वैदिक मंत्रों के साथ विवाह करने वालों के साथ ऐसा नहीं होता? यदि हिंसा होती है, कोई अपराध होता है तो कानून विवाहित और अविवाहित जोड़े के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। अपराध तो अपराध ही होता है। वैसे भी जब विवाह का मूल ही समाज की स्वीकृति हो तो लिव इन वैसे भी विवाह है।

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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