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परिवार ने होटल में किया 7000 का नाश्ता, अजनबी ने चुकाया बिल, छोड़ गया पर्ची, पढ़ कर आए आंसू!

कहते हैं “बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले ना भीख!” दान का संसार ही अनोखा है. जहां लोग गुपचुप लाखों दान कर देते हैं. किसी को बचाने के लिए चुपचाप लाखों रुपये दे देते हैं, तो वहीं रास्ते पर भिखारी भी एक एक रुपये के लिए तरसते दिखते हैं. वहीं कई बार किसी अच्छे खाते पीते घर के इंसान को अजनबी से मदद मिलना हैरान कर जाता है.  ऐसा ही एक शख्स के साथ हुआ जब वह अपने परिवार के साथ रेस्टोरेंट में नाश्ता कर रहा था, लेकिन हैरानी तब हुई जब एक अजनबी ने उसके एक दो नहीं बल्कि करीब साढ़े सात हजार रुपये का बिल चुका दिया, लेकिन उससे भी ज्यादा दिल को छू लेने वाली बाद बिल की पर्ची में लिखा संदेश था जिसे पढ़ कर परिवार के मुखिया के आंख में आंसू आ गए.

किसी और ने चुका दिया बिल?41 साल के डॉ मैक स्लॉटर, अमेरिका के टैक्सास में इमेर्जेंसी रूम फिजीशियन हैं. वे अपने परिवार के साथ  फोर्ट वर्थ में मिमी के कैफे में अपने तीन बच्चों और पत्नी के साथ  नाश्ता करने गए थे. लेकिन नाश्ता करने के बाद जब स्लॉटर बिल चुकाने के लिये तैयार हुए तो वेटरेस ने उन्हें यह बता कर चौंका दिया था कि उनका 85.21 डॉलर यानी 7480 रुपये का बिल तो किसी ने पहले ही चुका दिया गया है.बिल की पर्ची में संदेश
लेकिन असल सरप्राइज तो अभी आना बाकी था. जब वेटरेस ने स्लॉटर को बिल की रिसीट थमाई तो उसमें हाथ से लिखा एक संदेश था. बिल पर लिखा था, महान पिता होने के लिए धन्यवाद. लेकिन जब उन्होंने पर्ची के पीछे दूसरे संदेश भी था, “एक पिता की ओर से दूसरे पिता को. ऐसा पिता होने के लिए धन्यवाद  जिसकी उनहें जरूरत है भले ही कोई भी देख रहा हो.“

किसने भेजा था?
संदेश यहीं खत्म नहीं हुआ. इसमें आगे लिखा था. “हमें आप जैसे और पुरुषों की जरूरत है, हमें यह देखने देने के लिए धन्यवाद कि आप अपने बच्चों से कितना प्यार करते हैं. ”संदेश में अंत में लिखा था, “एक सेवानिवृत्त आर्मी मेडिक की ओर से”

आसूं रोक नहीं सके.  कोई भी उनकी प्रतिक्रिया देख नहीं रहा था और वह शख्स पहले ही जा चुकी था. यह विशुद्ध भलमनसाहत थी. उन्होंने बताया कि वो तो केवल अपने बच्चों के साथ कैफ में सरल सा डॉट गेम खेल रहे थे और उन्हें तो पता भी नहीं चला कि कोई उन्हें देख रहा था.  स्लॉटर म्यूजिक मीट्स मेडिसिन नाम की गैरलाभकारी संस्था के संस्थापक हैं जो अस्पताल में बच्चों के सिखाने का वक्त देने के साथ उपकरण भी दान देती

 

 

Manoj Mishra

Editor in Chief

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