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दो साल में ब‍िक गया 10 करोड़ का नकली घी, एक लीटर में 430 रुपए का होता था प्रॉफ‍िट

आगरा। नकली देसी घी के सौदागरों ने हर त्योहार को अच्छी तरीके से भुनाया। अमूल, पतंजलि, रियल गोल्ड सहित 18 नामचीन ब्रांड की साख का पूरा फायदा उठाया। क्षेत्र में अधिक बिक्री वाले ब्रांड की पैकेजिंग कर नकली घी को बेचा जाता था। दो साल तकरीबन 10 करोड़ रुपये के नकली घी की बिक्री की गई। पुलिस को जांच के दौरान 1.18 करोड़ रुपये की बिक्री किए जाने के साक्ष्य मिले हैं। 

नकली घी के सौदागरों ने वर्ष 2022 में कहरई मोड़ स्थित मारुति प्रवासम कालोनी में फैक्ट्री खोली थी। इसके लिए तीन गोदाम किराए पर लिए गए थे। पहली बार 10 दिसंबर 2022 को बजरंग ट्रेडर्स को नकली घी भेजा गया था। जांच में सामने आया कि बजरंग ट्रेडर्स को आठ नवंबर 2024 तक 43 लाख रुपये का नकली घी भेजा जा चुका था। मैनेजर राजेश भारद्वाज द्वारा नजर रखी जाती थी कि किसी भी प्रकार की घी की पहचान न हो सके। गोदाम से सभी बिलों की प्रतियां मिली थीं।
सहायुक्त आयुक्त खाद्य शशांक त्रिपाठी ने बताया कि नकली देसी घी के 13 नमूने लिए गए हैं। जांच के लिए प्रयोगशाला में भेज दिया गया है। 14 दिन में रिपोर्ट आ जाएगी। 

कबाड़ियों से होती थी 15 किग्रा टिन की खरीद

राजेश भारद्वाज सहित अन्य द्वारा खाली टिन की खरीद भी की जाती थी। जांच में पता चला कि टिन की खरीद कबाड़ियों से की जाती थी। एक टिन 15 किग्रा का होता था। लेबल को हटाने के बाद नई लेबल अलग ब्रांड की लगा दी जाती थी। आपको बता दें क‍ि नकली देसी घी को लेकर शिकायतें आती थीं। हालांकि उन पर अधिकारियों द्वारा संज्ञान नहीं लिया गया। इसी का फायदा नकली घी के सौदागर लगातार उठाते रहे। 

इनकी मिलीं बिल की प्रतियां 

अक्षय ट्रेडर्स को अप्रैल 2024 को 1.91 लाख व श्याम ट्रेडर्स 1.52 लाख, अनंत कुमार व सतीश कुमार जम्मू 11 मार्च 2024 सहित अन्य तिथियों में कुल 13.47 लाख, नागचंद्र जम्मू को आठ मार्च 2024 दो लाख, विभु एजेंसी गोंडा को 1.28 लाख, गोयल ट्रेडर्स मेरठ को 6.34 लाख, न्यू ट्रेडर्स 2.78 लाख व अनिल ट्रेडर्स प्रयागराज को 1.41 लाख, ओम एजेंसीज शाहजहांपुर को 35 हजार, गोकुल कंपनी बिहार को 89 हजार, ओम ट्रेडिंग उदयपुर राजस्थान को एक लाख रुपये।

छह महीने से चल रही थी फैक्‍ट्री 

छह माह से शहर के कहरई मोड़ में नकली देसी घी की फैक्ट्री चल रही थी। एक बीघा में संचालित फैक्ट्री में तीन बड़े-बड़े गोदाम थे। प्रतिदिन 350 किग्रा घी तैयार होता था। एक किग्रा घी बनाने में 170 रुपये की लागत आती थी और इसे बाजार में 600 रुपये में बेचा जाता था। उत्तर प्रदेश, जम्मू, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित सात राज्यों में गिरोह का नेटवर्क फैला है। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफएसडीए) में भी कोई पंजीकरण नहीं था। नकली घी की पैकिंग पर महज ग्वालियर के खाद्य विभाग का पंजीकरण नंबर अंकित था। 

पांच घंटे तक चली थी कार्रवाई 

इसके बाद भी एफएसडीए अधिकारियों को इसकी भनक नहीं लगी। गुरुवार को कहरई मोड़ स्थित फैक्ट्री में पांच घंटे तक कार्रवाई चली। आगरा नकली और मिलावटी घी बनाने का का अड्डा बन चुका है। विजय नगर कालोनी, ट्रांस यमुना, शास्त्रीपुरम, सिकंदरा, रुनकता सहित अन्य क्षेत्रों में नकली घी बरामद हो चुका है। कहरई मोड़ स्थित मारुति प्रवासम में नकली देसी घी की फैक्ट्री एक दिन में नहीं खुली है।ग्वालियर में भी है कई फैक्ट्री 

नीरज अग्रवाल, ब्रजेश ने एक साल पहले इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। नीरज की ग्वालियर में भी कई फैक्ट्री हैं, जिसमें देसी घी सहित अन्य सामान को बनाया जाता है। छह माह पूर्व एक के बाद एक मशीनें लाई गईं और रिफाइंड सहित अन्य सामान को मंगवाना शुरू किया गया। नीरज ने ग्वालियर से तीन कर्मचारियों को नौकरी पर रखा। इसमें शिव चरण, रवि, भाष्कर गौतम और सागर निवासी धर्मेंद्र सिंह शामिल हैं। 

तीन भागों में बंटा है फैक्‍ट्री 

पूछताछ में कर्मचारियों ने बताया कि फैक्ट्री को तीन भाग में बांटा गया है। इसमें एक में मशीनें रखी हैं और शेष दो गोदाम में बने घी के और खाली कनस्तर रखे जाते हैं। एक पर्चे में घी की मात्रा लिखकर आती थी। मैनेजर द्वारा इसकी जानकारी दी जाती थी। फैक्ट्री में हर दिन 350 किग्रा नकली घी तैयार किया जाता था। नकली घी बनाने के लिए रिफाइंड में एसेंस, बीआर आयल मिलाया जाता है। 100 रुपये में बिकने वाले पाम आयल का प्रयोग किया जाता था। 

खुशबू लाने को लगाया जाता था देसी घी का तड़का 

इसके साथ ही खुशबू लाने के लिए नकली घी में शुद्ध देसी घी का तड़का लगाया जाता था। 15 किग्रा के टिन में नकली घी को तैयार कर रख दिया जाता था और आन डिमांड किसी भी राज्य अथवा क्षेत्र में बिक्री की जाती थी। सहायक आयुक्त खाद्य शशांक त्रिपाठी ने बताया कि एक किग्रा नकली घी 150 में तैयार होता था और 600 रुपये में बेचा जाता था। नामचीन ब्रांड का लेबल लगा होने के चलते कोई भी शक नहीं कर पाता था। इसकी आसानी से बिक्री हो जाती थी।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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