धर्म

देवउठनी एकादशी पर करें मां तुलसी की विशेष पूजा, जीवन की सारी बाधाएं होंगी समाप्त

नई दिल्ली। देवउठनी एकादशी का दिन अपने आप में बेहद शुभ होता है। यह साल की सबसे महत्वपूर्ण एकादशी होती है, क्योंकि इस दिन पर भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागते हैं और अपना कारभार संभालते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस पावन दिन पर भक्त भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के साथ देवी तुलसी की भी पूजा करते हैं। साथ ही कठोर व्रत का पालन करते हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल यह एकादशी 12 नवंबर को मनाई जाएगी। 

वहीं, इसके अगले दिन तुलसी विवाह पर्व मनाया जाएगा। ऐसा माना जाता है कि इस तिथि पर मां तुलसी की विधिवत पूजा करने के साथ उनकी चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है, तो आइए यहां पढ़ते हैं।
बाला॥ 

यो गोप वह दानव राजा। शङ्ख चुड नामक शिर ताजा॥ 

तुलसी भई तासु की नारी। परम सती गुण रूप अगारी॥ 

अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ। कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ॥ 

वृन्दा नाम भयो तुलसी को। असुर जलन्धर नाम पति को॥तब जलन्धर ही भेष बनाई। वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई॥ 

शिव हित लही करि कपट प्रसंगा। कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा॥ 

भयो जलन्धर कर संहारा। सुनी उर शोक उपारा॥ 

तिही क्षण दियो कपट हरि टारी। लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी॥ 

जलन्धर जस हत्यो अभीता। सोई रावन तस हरिही सीता॥ 

अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा। धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा॥ 

यही कारण लही श्राप हमारा। होवे तनु पाषाण तुम्हारा॥ 

सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे। दियो श्राप बिना विचारे॥ 

लख्यो न निज करतूती पति को। छलन चह्यो जब पार्वती को॥धग्व रूप हम शालिग्रामा। नदी गण्डकी बीच ललामा॥ 

जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं। सब सुख भोगी परम पद पईहै॥ 

बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा। अतिशय उठत शीश उर पीरा॥ 

जो तुलसी दल हरि शिर धारत। सो सहस्त्र घट अमृत डारत॥ 

तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी। रोग दोष दुःख भंजनी हारी॥ 

प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर। तुलसी राधा मंज नाही अन्तर॥ 

व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा। बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा॥ 

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही। लहत मुक्ति जन संशय नाही॥ 

कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत। तुलसिहि निकट सहसगुण पावत॥बसत निकट दुर्बासा धामा। जो प्रयास ते पूर्व ललामा॥ 

पाठ करहि जो नित नर नारी। होही सुख भाषहि त्रिपुरारी॥ 

॥ दोहा ॥ 

तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी। 

दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी॥ 

सकल दुःख दरिद्र हरि हार ह्वै परम प्रसन्न। 

आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र॥ 

लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम। 

जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम॥ 

तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम। 

मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास॥

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं।  जगन्नाथ डॉट कॉम  यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें।  जगन्नाथ डॉट कॉम अंधविश्वास के खिलाफ है।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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