-दीपक रंजन दास
दिल्ली के एक कोचिंग सेन्टर में बारिश का पानी भर गया. बेसमेंट में चल रहे इस बित्ते भर के क्लास रूम में विद्यार्थी फंस गए और तीन छात्रों की मौत हो गई. ऐसे ही कुछ और मामले देश के अलग-अलग इलाकों से सामने आए. इसके बाद देशभर में कोचिंग सेन्टर्स में सुरक्षा मानदण्डों को लेकर सर्वे शुरू हो गया है. अपने भिलाई में भी प्रशासन कोचिंग सेन्टर्स की जांच पड़ताल में जुट गया है. एक अजीब सा ढर्रा है. कोचिंग सेन्टर में हादसा हुआ तो कोचिंग सेन्टरों की पड़ताल शुरू कर दी. कल किसी होटल में हादसा हो गया तो होटलों की जांच शुरू कर दी जाएगी. सवाल यह उठता है कि जब किसी भी निर्माण कार्य के लिए कई चरणों में अनुमति लेनी होती है तो बाद में जांच की नौबत ही क्यों आती है. जवाब भी उतना ही आसान है. किसी भी प्रकार की अनुमति दस्तावेजों के आधार पर टेबल पर बैठे-बैठे दी जाती है. सुरक्षा मानकों के सर्टिफिकेट बनाने वाले होते हैं, इलेक्ट्रिकल सेफ्टी के सर्टिफिकेट लगाए जाते हैं. बस एक सवाल छूट जाता है कि आपात स्थिति में निकासी या बचाव की क्या व्यवस्था की गई है. धार्मिक पर्यटन स्थल वाले पहाड़ों पर निर्माण कार्यों की अधिकता के चलते ये पहाड़ खतरनाक हो चुके हैं. अब तो उत्तर से लेकर दक्षिण तक सभी जगहों से भूस्खलन की खबरें आ रही हैं. तो क्या पहाड़ों पर स्थित सभी मंदिरों का सर्वे कराया जाना चाहिए? पहाड़ों पर निर्माण की अनुमति देने के कठोर नियम होने चाहिए. पहाड़ों पर ये मंदिर हजारों साल से हैं. पर्यटन सुविधाओं को मंदिरों से दूर और पहाड़ों के नीचे ही विकसित किया जाना चाहिए. रही बात कोचिंग सेन्टर्स की तो तंग जगहों में सेन्टर खोलना उनकी मजबूरी है. कहीं क्लासेस बेसमेंट में लग रही हैं तो कहीं दूसरे या तीसरे माले पर. ऐसे कई कोचिंग सेन्टर्स भिलाई में भी दिख जाएंगे जहां एक संकरी सी लोहे की सीढ़ी आपको क्लासरूम तक लेकर जाती है. किसी भी तरह की इमरजेंसी होने पर यहां आफत आ सकती है. किसी की तबियत ही बिगड़ जाए तो रोगी को नीचे लाना ही मुश्किल हो जाए. दरअसल, सुरक्षा मानकों को लेकर यह लापरवाही हमारी आदत में शुमार है. लगभग सभी नगर निगम अपनी पूरी कमाई चौक चौराहों के सौन्दर्यीकरण और कथित विकास कार्यों पर खर्च कर देते हैं. एक उन्नत अग्निशमन सेवा उसकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, इसे वह महसूस तक नहीं करते. इधर ऊंची-ऊंची इमारतों के लिए वह बिल्डिंग परमिशन तो दे रहे हैं पर जब-जब कोई मुसीबत आती है तो भिलाई इस्पात संयंत्र की अग्निशमन सेवा ही जान-माल की हिफाजत के लिए दौड़ती नजर आती हैं. सुरक्षा मानक एक सोच है. यदि आप बुरे से बुरा सोच कर निर्माण करते हो तो सुरक्षा मानकों पर आप श्रेष्ठ कार्य कर सकते हो. वरना कोचिंग सेन्टर में पानी भरने के लिए एसयूवी को जिम्मेदार ठहराने वाली मूर्खताएं हंसाती रहेंगी.
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