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खुल गए सक्रिय राजनीति के रास्ते, 5 सालों तक तीन राज्यों में राज्यपाल रहे रमेश बैस, अब राज्य या केन्द्र में हो सकते हैं सक्रिय

रायपुर (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। 5 साल तक सक्रिय राजनीति से दूर रहने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता रमेश बैस के लिए एक बार फिर वापसी के रास्ते खुल गए हैं। दरअसल, रायपुर लोकसभा क्षेत्र से लगातार 7 बार सांसद रहे बैस को केन्द्र की मोदी सरकार ने 2019 में त्रिपुरा का राज्यपाल बना दिया था। उसके बाद बैस झारखंड और बाद में महाराष्ट्र के भी राज्यपाल रहे। केन्द्र सरकार ने हाल ही में कई राज्यों के राज्यपालों को बदला और नए राज्यपालों का मनोनयन किया। इसमें महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे रमेश बैस को विदाई दे दी गई। बैस अपने गृह प्रदेश छत्तीसगढ़ लौट आए हैं और कयास लगाए जा रहे हैं कि उनकी वरिष्ठता को देखते हुए केन्द्र सरकार उनके राजनीतिक अनुभवों का लाभ लेने के लिए उन्हें राज्य या केन्द्र में सक्रिय कर सकती है। हालांकि उन्हें केन्द्रीय संगठन में अहम् जिम्मेदारी दिए जाने की भी चर्चा है।

35 सालों तक रायपुर लोकसभा से सांसद रहने वाले भाजपा के सीनियर ओबीसी नेता रमेश बैस 5 सालों की राज्यपाल की पारी पूरी कर रायपुर लौट आए। रायपुर एयरपोर्ट पर पार्टी के सीनियर नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पूरे जोशो खरोश के साथ फूल-मालाओं से उनका स्वागत किया। छत्तीसगढ़ की धरती पर उतरते ही रमेश बैस ने सीधे राहुल गांधी पर हमला बोला। साथ ही ये भी संकेत दिया वे सक्रिय राजनीति में कदम रखने जा रहे हैं। पांच साल बाद तीन राज्यों में राज्यपाल की निर्विवाद पारी खेल कर रमेश बैस जब रायपुर लौटे, तो उन्होंने सबसे पहला वार राहुल गांधी पर किया। छत्तीसगढ़ वापस लौटते ही उनकी प्रदेश की राजनीति में सक्रिय भूमिका को लेकर चर्चे शुरू हो गए। विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी कह दिया कि उन्हें सक्रिय राजनीति में किस्मत आजमा लेनी चाहिए। इशारा बृजमोहन अग्रवाल की खाली हुई सीट दक्षिण विधानसभा की तरफ था। रायपुर एयरपोर्ट पर मीडिया ने भी उनसे यही सवाल किया तो उनका जवाब था अब वो पार्टी के साधारण कार्यकर्ता हैं। पार्टी जो भूमिका देगी, जो कुछ करने को कहा जाएगा, वो करेंगे। साथ ही राहुल गांधी के चक्रव्यूह वाले बयान पर भी बेहद तीखा हमला किया।

रमेश बैस प्रदेश की राजनीति में भाजपा का बड़ा ओबीसी चेहरा रहे हैं, जो शुरू से लेकर आखिरी तक अपराजेय रहा। रायपुर लोकसभा सीट से लगातार 7 बार सांसद चुने जाने का उन्होंने जो रिकार्ड बनाया, वह अब तक बरकरार है। सक्रिय राजनीति में रहते हुए सांसद की अपराजेय पारी खेलने के बाद आलाकमान द्वारा उन्हें राज्यपाल की भूमिका दी गई। जाहिर है राहुल गांधी पर रमेश बैस के बयान से कई तरह के कयास लगने शुरू हो गए हैं। पार्टी उन्हें सक्रिय राजनीति में उतारती है नहीं, ये तो बाद की बात है, लेकिन तीखे तेवर के साथ बयान देकर रमेश बैस ने ये तो साफ कर दिया है कि फिलहाल सक्रिय राजनीति से वो दूर नहीं जा रहे।

विस उपचुनाव कद के विपरीत
बैस, छत्तीसगढ़ में भाजपा का बड़ा चेहरा रहे हैं। 7 बार सांसद और केन्द्र में मंत्री भी रहे। तीन राज्यों के राज्यपाल रहे, ऐसे में इस बात की संभावना कम ही है कि पार्टी उन्हें विधानसभा का उपचुनाव लड़वाएगी। हालांकि ऐसे कयास लगने शुरू हो गए हैं कि बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद खाली हुई सीट से उन्हें चुनाव लड़वाया जा सकता है, क्योंकि पार्टी को एक बड़े और मजबूत प्रत्याशी की तलाश है। राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क है कि पार्टी बैस के साथ उपचुनाव का दाँव तभी खेलेगी, जब उन्हें कद के अनुरूप महत्व देना होगा। यानी सिर्फ विधायक या फिर राज्य में मंत्री का पद उनके राजनीतिक कद के सामने काफी छोटा होगा। ऐसे में इस बात की संभावना ज्यादा है कि उन्हें या तो राज्यसभा में भेज दिया जाए या फिर शीर्ष संगठन में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाए। हालांकि फिलहाल यह सब सिर्फ कयासों में ही है।

पार्टी के आदेश का इंतजार
फिलहाल बैस पार्टी के आदेश का इंतजार कर रहे हैं। पत्रकारों ने जब इस बाबत उनसे सवाल किया तो बैस ने सब कुछ पार्टी के आदेश पर छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि पार्टी जो भी निर्णय करेगी, उसका वे पालन करेंगे। बैस के बयान के बाद कई तरह की अटकलें लग रही है। हालांकि अभी तक भाजपा की ओर से बैस को लेकर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन पिछले कुछ समय से देखा गया है कि पार्टी ने कई राज्यपालों को सक्रिय राजनीति में वापस लिया है।

पार्षद से राज्यपाल तक का सफर
कद्दावर नेता रमेश बैस के राजनीतिक सफर की शुरूआत 1978 में रायपुर नगर निगम के पार्षद निर्वाचित होने के बाद शुरू हुई थी। 1980 में वे पहली बार अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक बने। 1989 में पहली बार रायपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। इसके बाद 1996 ,1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 तक वे लगातार सात बार सांसद निर्वाचित हुए। इस दौरान वे केंद्र सरकारों में मंत्री भी रहे। 29 जुलाई 2019 को उन्हें त्रिपुरा का राज्यपाल बना दिया गया। इसके बाद उन्होंने झारखंड और महाराष्ट्र में भी राज्यपाल की जिम्मेदारी संभाली। फिलहाल उन्होंने महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से विदाई लेकर गृहराज्य छत्तीसगढ़ में वापसी की है।

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