जीपीएम। गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले बैगा आदिवासियों का बुरा हाल है। गौरेला जनपद पंचायत के ठाड़पथरा, आमानाला, दुर्गाधारा क्षेत्र में रहने वाले राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र बैगा आदिवासी आज भी शुद्ध पानी के लिए तरस रहे हैं उनकी स्थिति ऐसी है जैसे कि वे पाषाण युग में जीवन जी रहे हों। जहां पर वे रहते है वहां पर न पहुंच मार्ग है न पक्की सड़क, न ही शुद्ध पानी, न कुआं, न हैंडपंप, यही हाल है इनका अमरकंटक की तराई में बसे बैगा आदिवासियों का। मैकल पहाड़ से बहकर आने वाले पहाड़ी नाले के बाजू में छोटा सा गड्ढा खोदकर वर्षों से उसका पानी पीकर जीवन यापन करने को मजबूर है बैगा आदिवासी।
जिन गड्ढों से बैगा आदिवासी पानी पीते हैं उन गड्ढे में पेड़ों से गिरे हुए पत्ते सड़ रहे हैं बगल में काई भी जमी हुई है, मतलब बीमारी होने का अंदेशा बना हुआ है पर फिर भी जीवन चलाने के लिए इसी पानी को कपड़े से छान कर बैगा आदिवासी पीते आ रहे हैं, और इसी पानी को दैनिक उपयोग और निस्तारी के लिए करते है। गांव में हैंडपंप भी है पर वह बिगड़ा हुआ है और एक हैंडपंप से लाल पानी आता है जो पीने योग्य नहीं है, इसलिए मजबूरी में यहां पर रहने वाले ग्रामीण इसी तरह पानी पीने को विवश हैं। बरसात के दिनों में जब नाले में बाढ़ आ जाती है तब ये लोग बाढ़ का पानी कम होने के बाद बगल में गड्ढा खोदकर उसी पानी को पीते हैं।
जीवन बैगा कहते है कि सालों से वे लोग यही पानी पीने और निस्तारी के लिए उपयोग करते है जिसके चलते खराब पानी पीने से होने वाली प्रमुख बीमारियों का भी खतरा हमेशा बना रहता है ये बात इन बैगा आदिवासियों को भी पता है कि पीने के पानी में गंदगी है पर वर्षों से यही पीते आ रहे हैं इसलिए पी रहे हैं। वहीं बात पहुंच मार्ग की की जाए तो सड़क जैसी कोई चीज यहां पर नजर नहीं आती, मिट्टी की सड़क में बरसात के पानी से सड़क के बीचों बीच में एक से 2 फीट गहरा कटाव हो गया है जो पूरी सड़क की लंबाई में है। जहां सूखे के दिनों में भी चलना बड़ा कठिन है, ग्रामीण कहते हैं की बरसात के दिनों में तो हालत बदतर हो जाती है, पर कभी कोई अधिकारी आता नहीं और अगर आते भी है तो व्यवस्था में कोई सुधार नहीं होता।
पिंकी बैगा और उनके मोहल्ले की और महिलाओं की माने तो मोहल्ले में जो हैंडपंप लगा है उसमें पानी गो आता है पर पानी लाल और गंदा रहता है जिसके चलते वो निस्तारी के साथ पीने लायक भी नही रहता संभर सिंह बैगा का कहना है कोई भी उनकी सुनता ही नही है और वे लोग ऐसे ही नाले के बाजू में कच्चा थोड़ी बनाकर उससे पानी निकालकर पीते है। हमेशा डर भी राहत है पर क्या करे उनकी मजबूरी है जो ये यही पानी पीते हैं।
अत्यंत पिछड़े आदिवासी क्षेत्रों में शहरी क्षेत्र की तरह विकास पहुंचाने और उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए सरकार ने मध्यप्रदेश शासन काल में ही आदिवासी विकास विभाग का गठनकर पेंड्रा में ही परियोजना प्रशासक का कार्यालय स्थापित कराया था जो छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी लगातार काम कर रहा है, इस कार्यालय से सिर्फ आदिवासियों के विकास के लिए योजनाएं बनाने और क्रियान्वयन का काम ही कराया जाता पर यह विभाग अब सिर्फ भ्रष्टाचार के आरोपों में ही घिर कर रह गया, इस मामले पर हमने आदिवासी विकास विभाग के परियोजना प्रशासक और सहायक आयुक्त से बात करने की कोशिश की पर बात नहीं हो सकी।
वहीं गौरेला जनपद पंचायत का कार्यक्षेत्र होने की वजह से जनपद पंचायत गौरेला के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने पानी की व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार द्वारा चल रही जल जीवन मिशन से पानी पहुंचाने की बात जरूर कहीं ,पर इस योजना के कोई नामो निशान भी वहां पर नजर नहीं आए, हालांकि जब हमने कुआं और हैंडपंप से पानी पहुंचाने और सड़क मार्ग से जोडऩे के लिए कहा तो साहब ने कहा योजना में है काम होगा, पर कब तक होगा वे बता नहीं सकते ? इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की जिम्मेदार कितने जिम्मेदार हैं। वहीं गौरेला जनपद के सीईओ की मानें तो जल जीवन मिशन के तहत वहां पानी पहुचाने का प्लान है पर वो जमीन में कब दिखाई देगा ये खुद उन्है नही पता।
बहरहाल बैगा और आदिवासी विकास के नाम पर वर्षों से करोड़ों रुपए की योजनाएं बनती आ रही है पर इसका फायदा इन बैगा आदिवासियों को कितना मिला यह तस्वीरें बयां कर रही हैं वही जिम्मेदार अधिकारियों को इतनी फुर्सत कहां की वे एसी कमरों से निकलकर इन बैगा आदिवासियों के दुख दर्द और तकलीफ को झांके।
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