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बाजारों में आसानी से नहीं मिलते ये जंगली फल, स्वाद में गजब तो सेहत में अति उत्तम

पहाड़ों पर ऐसे बहुत से फल और सब्जी हैं, जो सामान्य बाजार में नहीं मिलती हैं. इसके बारे में बहुत ही कम लोगों को पता होता है. उत्तराखंड के पहाड़ों में पाए जाने वाले फल स्वादिष्ट होने के साथ ही सेहत के लिए काफी फायदेमंद है.बेड़ू पाको बारा मासा गाना, जो उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकगीत है. इसका मतलब है बेड़ू ऐसा फल है, जो पहाड़ों में बारह महीनें पकता है. उत्तराखंड में अनेक स्वास्थ्य वर्धक वनस्पतियां और फल पाए जाते हैं, जिसमें बेड़ू भी एक चर्चित फल है. इसे हिमालयन फिग नाम से भी जाना जाता है. बेड़ू पहाड़ी इलाकों में काफी मात्रा में मिलने वाला स्वास्थ्य वर्धक और स्वाद से भरपूर फल है, इसे पहाड़ी अंजीर भी कहते हैं. इससे बने उत्पाद आजकल ऑनलाइन भी बिक रहे हैं.काफल एक पहाड़ी फल है, जो मुख्य रूप से उत्तराखंड में मिलता है.  इस राज्य का यह प्रसिद्ध फल है, जिसे यहां के लोग बेहद चाव से खाते हैं. काफल एक छोटे आकार का बेरी जैसा फल है, जो गोल और लाल, गुलाबी रंग का होता है. इसका स्वाद मीठा और बहुत ही रसीला होता है. इस फल में कई तरह के औषधीय गुण मौजूद होते हैं. गर्मी के मौसम में पहाड़ी लोग काफल का सेवन खूब करते हैं जो यहां आने वाले पर्यटकों की भी पहली पसंद बना हुआ है. काफल 1300 मीटर से 2100 मीटर (4000 फीट से 6000 फीट) तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पैदा होता है. यह जंगलों में स्वतः उगने वाला पेड़ है, जिस कारण इसे जंगली फल भी बोला जाता है. सीजन में इसकी कीमत 600 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है

 

यह पहाड़ी फल कुमाऊं में घिंगारु, गढ़वाली में घिंघरु और नेपाली में घंगारू के नाम से मशहूर है. छोटे-छोटे लाल सेव जैसे दिखने वाले घिंघरु के फलों को हिमालयन रेड बेरी, फायर थोर्न एप्पल या व्हाइट थोर्न भी कहते हैं. जबकि इसका वानस्पतिक नाम पैइराकैंथा क्रेनुलाटा है. घिंघारू एक औषधीय पौधा है, जिसकी जड़ से लेकर फल, फूल, पत्तियां और टहनियां सभी हमारे लिए उपयोगी है. यह फल सिर्फ 3 माह जून, जुलाई और अगस्त के आसपास ही मिलता है. स्कूली बच्चे और गांव में जंगल जाने वाली महिलाएं इसे बड़े चाव से खाती हैं. घिंघारू के फलों को सुखाकर चूर्ण बनाकर दही के साथ खूनी दस्त का उपचार किया जाता है. इन फलों में पर्याप्त मात्रा में शुगर भी पाई जाती है, जो शरीर को तत्काल ऊर्जा प्रदान करती है. इसके अलावा इसकी टहनी का प्रयोग दातून के रूप में भी किया जाता है, जिससे दांत दर्द से निजात भी मिलती है.उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों में आसानी से देखने को मिल जाएगा हिसालू. पहाड़ की रूखी-सूखी धरती पर छोटी झाड़ियों में उगने वाला यह फल या बेरी जंगली रसदार फल है, जो देखने में आकर्षित तो लगता ही है. वहीं अपने औषधीय तत्वों के लिए भी विख्यात है. हिसालू उत्तराखंड का एक ऐसा अद्वितीय और बहुत स्वादिष्ट फल है, जो पहाड़ी क्षेत्रों में मुख्य रूप से अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, चम्पावत और पिथौरागढ़ के अनेक स्थानों में पाया जाता है. ये कांटेदार छोटी-छोटी झाड़ियों वाला होता है. मई-जून के महीने में पहाड़ की रूखी-सूखी धरती पर छोटी झाड़ियों में उगने वाला एक जंगली रसदार फल है.उत्तराखंड के बंजर जमीनों में मई-जून महीने के दौरान पकने वाला खट्टा मीठा जंगली फल किलमोड़ा, पक कर तैयार हो चुका है. किलमोड़ा के पौधे कंटीली झाड़ियों वाले होते हैं. एक खास मौसम जून से जुलाई में इस पर बैंगनी रंग के फल आते हैं. इन फलों को चुनना और इससे रस निकाला काफी जटिलता भरा काम है. क्योंकि, इसकी पत्तियों और तनों में बहुत ही तीखे कांटे होते हैं.  इसका पेड़ भौगोलिक रूप से काफी विपरीत और उबड़-खाबड़ पहाड़ी स्थानों में पाया जाता है. इसमें शरीर की बीमारियों से लड़ने में काफी मददगार भी है

.Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें.  जगन्नाथ डॉट कॉम किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.

Manoj Mishra

Editor in Chief

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