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कभी पिता की दुकान पर पंचर बनाए-मां संग सिले कपड़े… आज जज की कुर्सी पर बैठकर अहम फैसले सुनाते हैं अहद

मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके ख्वाबों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।’ ये लाइनें मानों उत्तर प्रदेश के छोटे से आने वाले अहद अहमद के लिए ही लिखी गई हों। मुफलिसी और संघर्ष में पले-बढ़े अहद अहमद पर सटीक बैठती हैं। कच्चे मकान से हाईकोर्ट जज की कुर्सी तक का सफर कभी हार न मानने के जज्बे को साबित करता है।अहद अहमद का जन्म 20 जुलाई 1997 को प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) शहर से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर नवाबगंज इलाके के छोटे से गांव बरई हरख में हुआ था। गांव में छोटा-सा कच्चा मकान। घर के पास ही पिता शाहजाद अहमद की छोटी-सी साइकिल की दुकान है। दुकान से पांच लोगों के परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल था। इसलिए मां भी सिलाई का काम करती थी। अहद भी खाली समय में कभी पिता के साथ पंचर लगाने का काम करते तो कभी मां के साथ लेडीज सूट सिलते थे।अहद ने फिर भी हार नहीं मानी। वे हालातों से लड़कर पढ़ाई करते रहे। क्योंकि उन्हें यकीन था इन तंगहाली से निकलने का यही एक रास्ता है। 2010 में फर्स्ट डिवीजन से 10वीं और 2012 में सेकेंड डिवीजन से 12वीं की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने साल 2019 में बीए एलएलबी (ऑनर्स.) की डिग्री हासिल की और UP PCS J यानी ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेस की तैयारी शुरू कर दी। 2024 में पीसीएस एग्जाम दिया और पहले अटेंप्ट में सफलता हासिल करके जज बने। 27 साल अहद आज इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपर सिविल जज (जूनियर डिवीजन) वाराणसी में   हैं।अहद ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान यूपी पीसीएस एग्जाम की तैयारी शुरू की थी। उन्होंने कई इंटरव्यू में अपनी जर्नी के बारे में बात करते हुए कहा है कि जजों की परीक्षा के लिए मेरी तैयारी लॉकडाउन के दौरान शुरू हुई। मैंने मुफ्त ऑनलाइन कोचिंग क्लासेस की मदद ली, क्योंकि हमारी वित्तीय स्थिति मुझे कोचिंग संस्थान में शामिल होने की अनुमति नहीं देती थी।उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) द्वारा साल 2024 में आयोजित यूपी सिविल न्यायिक सेवा सिविल जज (जूनियर डिवीजन) परीक्षा दी। इस परीक्षा के माध्यम से कुल 330 पदों को भरा जाना था। अहद ने न सिर्फ पहले अटेंप्ट में यूपी पीसीएस जे  किया, बल्कि 157वीं रैंक हासिल की थी। बेटे की सफलता पर मां ने कहा है कि मेरे पति की कमाई मुश्किल से हमें खिलाने के लिए पर्याप्त थी। लेकिन, हम अपने बच्चों को शिक्षित करना चाहते थे। इसलिए, मैंने कई साल पहले सिलाई का काम शुरू किया। हम दोनों ने बहुत मेहनत की और हमारे प्रयासों का फल मिला।शाहजाद अहमद का घर जितना मामूली है, उनका संकल्प उतना ही असाधारण है। उन्होंने अपने तीन बेटों को     में पढ़ाया। शिक्षा के महत्व को शाहजाद बखूबी समझते थे। उनके बेटे शिक्षा के जीवन बदलने वाले प्रभाव का एक जीवंत उदाहरण हैं। सबसे बड़ा बेटा समद (30) सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। सबसे छोटा बेटा वजाहत (24) एक निजी बैंक में मैनेजर है।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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