निमाड़ क्षेत्र सदियों से दूध उत्पादन में अग्रणी रहा है. यहां की गायें न सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, बल्कि इन्हीं ने इसे देशभर में “दूध की राजधानी” के रूप में पहचाना दिलाया. आज कुछ नस्लें प्रतिदिन 25–30 लीटर तक दूध देती हैं, लेकिन केवल नस्ल ही पर्याप्त नहीं है, उचित देखभाल, पोषण और साफ-सुथरा वातावरण भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
दिन में दो बार स्वच्छ पानी पिलाना भी अनिवार्य
विशेषज्ञों के अनुसार, गाय को संतुलित आहार देना जरूरी है. इसमें हरा चारा, सूखा भूसा, खली, गुड़, खोपरा और चापड़ शामिल होना चाहिए. इससे दूध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों बढ़ती हैं. साथ ही, दिन में दो बार स्वच्छ पानी पिलाना भी अनिवार्य है, क्योंकि यह दूध बनने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाता है.साफ-सुथरा और हवादार बाड़ा गायों को तनावमुक्त रखता है, गंदगी और संक्रमण से दूध उत्पादन पर असर पड़ सकता है.
राकेश पटेल इस क्षेत्र में प्रेरणा बन चुके
खंडवा के मलगांव गांव के राकेश पटेल इस क्षेत्र में प्रेरणा बन चुके हैं. उनके फार्म में गिर, एचएफ, जर्सी और देशी नस्ल की गायें हैं. गायों को आरामदायक गद्दों पर सोने, दिन में दो बार नहलाने और डायरेक्ट शॉवर सिस्टम जैसी सुविधाएं दी जाती हैं. राकेश की गायों को गुड़, खोपरा, हरी मकई, खली और चापड़ का मिश्रण खिलाया जाता है, जिससे दूध का फैट और उत्पादन दोनों बढ़ते हैं. उनकी गायें 25–30 लीटर दूध देती हैं. राकेश मानते हैं कि गाय को परिवार का सदस्य मानकर देखभाल करनी चाहिए; खुश गाय ही अधिक दूध देती है.भारत में उच्च उत्पादन देने वाली प्रमुख नस्लें हैं. गिर, एचएफ, जर्सी, साहीवाल और थारपारकर. इन नस्लों के दूध उत्पादन के साथ-साथ उचित देखभाल और तकनीक का मेल किसान की आमदनी दोगुना कर सकता है. निमाड़ के राकेश पटेल इस बात का जीता-जागता उदाहरण हैं.





