27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस मनाया जाता है. इसकी शुरुआत सन 1980 में हुई थी. इसे मनाने का उद्देश्य पर्यटन क्षेत्रों का संरक्षण, संस्कृति को बढ़ावा देना है. बालाघाट जिला भी मध्य प्रदेश में पर्यटन के क्षेत्र में अहम स्थान रखता है. यहां पर प्राकृतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. यहां पर देश के ही नहीं दुनिया भर के पर्यटक बालाघाट का दीदार करने के लिए आते हैं. बीते कुछ सालों से बालाघाट मध्य प्रदेश का पर्यटन केंद्र बनकर उभर रहा है. हम आपको ऐतिहासिक और प्राकृतिक पर्यटन के बारे में बता रहे है, जो यहां की सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करता है.
बालाघाट की प्राकृतिक धरोहर है अनमोल
बालाघाट जिला एक ऐसा जिला है, जहां की आधी से ज्यादा जमीन पर वन पाए जाते हैं. बालाघाट की 53% भू-भाग पर जंगल है. ऐसे में यहाँ पर वनों के अलावा पहाड़, नदियां और झरने हैं, जिसका दीदार करने के लिए देश-विदेश के पर्यटक आते हैं. ऐसे में इसका लगातार विकास भी हो रहा है. इसमें कान्हा नेशनल पार्क सबसे खास है, जिसकी स्थापना 1955 में हुई थी. वहीं, सोनेवानी सेंचुरी भी अब पर्यटकों को अपनी ओर खींच रहा है. बालाघाट से लगा हुआ गर्रा गांव है, जहां पर बॉटनिकल गार्डन है. ये पहले काफी खास हुआ करता था लेकिन समय के साथ दुर्दशा का शिकार हुआ.
इसके लिए सरकार भी लगातार कोशिश कर रही है, जिसके लिए कई ग्रामों को पर्यटन ग्राम घोषित किया है. इसमें खास तौर से टेकाड़ी, पीपरटोला, केरा शामिल है. यहां पर होम स्टे बनाए गए हैं. लेकिन कनेक्टिविटी की कमी के चलते पर्यटक यहां पर पहुंच नहीं पा रहे हैं.
ढेर सारे झरने लोकल टूरिज्म को देते है बढ़ावा
जिले में पहाड़ है, जहां से कई सारे झरने है. ये झरने पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इसमें गांगुलपारा, रमरमा वॉटरफॉल और गोदरी वॉटरफॉल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. बालाघाट में कई सारी नदियां है, जो पर्यटन को बढ़ावा देती है. यहां कि जीवन रेखा कही जाने वाली नदिया बेहद खास है, जिसमें वैनगंगा नदी, चंदन, बाघ और बावनथड़ी नदी के कई घाट पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.
ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी है बेहद खास
यहां पर विश्व स्तर के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है. यहां पर लांजी का अहम रोल है, जहां पर 10वीं शताब्दी का कोटेश्वर शिव मंदिर है. इसमें कई राजवंशों के स्थापत्य कला की झलक देखने को मिलती है. वहीं हट्टा की बावली भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, जो तीन राजवंशों का अतीत अपने आप में समेटे हुए है. इसके अलावा रामपायली का राम मंदिर, सती टोला की सतियों की प्रतिमा, जाम का जामेश्वर मंदिर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.
इतना कुछ है लेकिन प्रचार में कमीपुरातत्व संग्रहालय के संरक्षक सुभाष गुप्ता का कहना है कि बालाघाट का पर्यटन का महत्व यही तक सीमित रह गया है. यहां के प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को जिले को पर्यटन के क्षेत्र में एक्सपोजर देना चाहिए. बुनियादी विकास की भी जरूरत है, जिससे यहां विरासत का प्रचार-प्रसार होना चाहिए. इससे स्थानीय रोजगार को भी बढ़ावा मिल सकेगा.
पुरातत्ववेत्ता वीरेंद्र गहरवार का कहना है कि बालाघाट जिले का नक्शा उड़ती हुई चिड़िया की तरह दिखता है. ऐसे ही इस पर प्रकृति की खास कृपा है. यहां पर मध्य प्रदेश के पर्यटन केंद्र भी बनाया जा सकता है. इसके लिए तमाम तरह के प्रयास किए जाने चाहिए. ऐतिहासिक अवशेषों को सहेजने का सकारात्मक प्रयास करना चाहिए. इसमें वन विभाग को भी आगे आकर इसमें मदद करना चाहिए. पुरातत्व संग्रहालय को भी विकसित कर एक मॉडल की तरह पेश करना चाहिए, जिससे पर्यटक यहां पर आकर्षित होकर जिले का भ्रमण करना चाहिए