बसना* । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बसना मंडल ने विजयादशमी उत्सव के अवसर पर एक भव्य पथ संचलन और कार्यक्रम का आयोजन किया। नई मंडी बसना में आयोजित इस कार्यक्रम में 1015 से अधिक स्वयंसेवक एकत्र हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता गाड़ा समाज के अध्यक्ष श्री चतुर्भुज आर्य जी ने की, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में माननीय राष्ट्रीय सह सरकार्यवाह श्री रामदत्त चक्रधर जी उपस्थित रहे।
*समाज में अस्पृश्यता दूर करने का आह्वान*
अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री चतुर्भुज आर्य ने भारत के प्राचीन इतिहास का उल्लेख करते हुए समाज में व्याप्त जातिवाद और उसके दुष्प्रभावों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जाति प्रथा के कारण समाज को भारी नुकसान हुआ है और इसी वजह से कई क्षेत्रों में धर्मांतरण की घटनाएं बढ़ रही हैं। उन्होंने स्वयंसेवकों से आह्वान किया कि वे समाज में जाकर अस्पृश्यता की भावना को दूर करने का काम करें, तभी हिंदू समाज सशक्त बन पाएगा। उन्होंने चारों पुरुषार्थों – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष पर भी मंडरा रहे वैश्विक षड्यंत्रों से आगाह किया।
*संघ की 100 साल की यात्रा और राष्ट्रनिर्माण के लक्ष्य*
पथ संचलन के बाद मुख्य वक्ता रामदत्त चक्रधर जी ने स्वयंसेवकों को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को हुई थी और अब हम इसकी 100 साल की यात्रा का शताब्दी वर्ष मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन 100 वर्षों में संघ का मूल स्वरूप नहीं बदला है। संघ का प्रमुख ध्येय देश के हिंदू समाज को संगठित करना और हमारी सांस्कृतिक विरासत को सहेजना है।
चक्रधर जी ने कहा कि देश को उत्कृष्ट संस्कार वाले लोगों की आवश्यकता है, क्योंकि यही सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चरित्र का आधार है। उन्होंने युवाओं से कहा कि संघ का प्रमुख कार्य शाखाओं के माध्यम से सेवा और संवेदना से भरे हुए युवाओं का निर्माण करना है। उन्होंने एक उदाहरण देकर समझाया कि कैसे संस्कार व्यक्ति के चरित्र को प्रभावित करते हैं और यही संस्कार राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक हैं।
*’राष्ट्र ही सर्वोपरि’ का मंत्र*
श्री चक्रधर ने बताया कि आज देशभर में आरएसएस के माध्यम से लगभग डेढ़ लाख सेवा कार्य चल रहे हैं। ‘राष्ट्र ही सर्वोपरि है, संगठन में शक्ति है’ के मंत्र को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक विभिन्न समाजों, जातियों और भाषाओं के होने के बावजूद एक साथ मिलकर चलते हैं, क्योंकि इससे हिंदू समाज संगठित होता है। उन्होंने कहा कि आज आरएसएस के रूप में संपूर्ण हिंदू समाज को एक प्रभावी संगठन मिला है।
उन्होंने स्वयंसेवकों को शाखाओं को मजबूत करने पर ध्यान देने का आग्रह किया, क्योंकि इससे देशभक्ति और संस्कृति से ओत-प्रोत युवा समाज को मिलते हैं। उन्होंने 1947 के विभाजन, 1962, 1965 और 1971 के युद्धों में स्वयंसेवकों के योगदान का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि 1962 के चीन युद्ध में संघ के योगदान को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में संघ को आमंत्रित किया था। इसी तरह 1965 के युद्ध के दौरान लाल बहादुर शास्त्री के आग्रह पर 22 दिनों तक दिल्ली की पूरी व्यवस्था संघ के स्वयंसेवकों ने संभाली थी।
*’पंच परिवर्तन’ से भारत बनेगा विश्वगुरु*
रामदत्त चक्रधर जी ने हिंदू समाज को एकजुट होने का आह्वान करते हुए कहा कि शक्तिशाली ही पूजनीय है। उन्होंने संगठन की शक्ति को समझाने के लिए उंगलियों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि एक उंगली कुछ नहीं कर सकती, लेकिन सब मिलकर कोई भी कार्य असंभव नहीं। उन्होंने कहा कि आज पंच परिवर्तनों को अपने घरों से ही शुरू करना होगा। इसमें कुटुंब प्रबोधन, समरसता, पर्यावरण, स्व का जागरण और नागरिक कर्तव्यों पर विशेष रूप से काम करना शामिल है।
उन्होंने अपने संबोधन का समापन करते हुए कहा कि आने वाले समय में भारत को जगतगुरु बनाना है। यह कार्य तभी पूरा होगा जब देश के सामान्य लोग अच्छी सोच, अच्छे कार्य और अच्छे चरित्र के साथ खड़े होंगे। ‘राष्ट्रभक्ति के ज्वार को राष्ट्रशक्ति में बदलना ही समय का आवाहन है।’ उन्होंने स्वयंसेवकों से प्रतिक्षण काम करते हुए हिंदू समाज को जगाने और एकजुट करने का आह्वान किया ताकि ऋषियों की कल्पना का भारत फिर से विश्व गुरु के पद को प्राप्त कर सके।
*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बसना मंडल ने मनाया विजयादशमी उत्सव, 1015 स्वयंसेवकों का पथ संचलन*
*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बसना मंडल द्वारा विजयादशमी उत्सव और पथ संचलन का आयोजन, 100 साल की यात्रा और भविष्य के लक्ष्य पर मंथन,*
*विजयादशमी पर आरएसएस का बड़ा आयोजन, ‘हिंदू समाज के सशक्तिकरण से ही राष्ट्र का उत्थान*