14 सितंबर को हिंदी दिवस 2025 मनाया जा रहा है। इस मौके पर भला राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को कैसे याद न किया जाए। दिनकर की रचना महाकाव्य ‘रश्मिरथी’ की पंक्तियां… ये महज हिंदी के कुछ छंद नहीं हैं। बल्कि इन शब्दों में वो ताकत है जो मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी मनुष्य को साहस से भर देती हैं। जो हमारे डगमगाते कदम को संभालने की क्षमता रखती हैं और हमारे संकल्पों को और दृढ़ बना सकती हैं। ऐसी ही कुछ पंक्तयां यहां दी गई हैं। लेकिन उससे पहले इन्हें लिखने वाले, रामधारी सिंह दिनकर के बारे में भी थोड़ा जान लें।
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
बिहार के बेगूसराय के सिमरिया गांव में जन्मे दिनकर को ‘वीर रस का कवि’ कहा जाता है। जो अपने शब्दों से देशवासियों को नए उत्साह से सराबोर करते हैं। 23 सितंबर 1908 को एक किसान परिवार में जन्मे दिनकर 3 साल के थे जब पिता का साया सिर से उठ गया।भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी उनकी रचनाओं ने बड़ा योगदान दिया। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं- रश्मिरथी, कुरुक्षेत्र, उर्वशी, हुंकार, परशुराम की प्रतीक्षा। भारत सरकार ने 1959 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन जय या कि मरण होगा।
3. है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में, खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़।
4. मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।
5. सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है। सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते।लेकिन, नौका तट छोड़ चली, कुछ पता नहीं, किस ओर चली। यह बीच नदी की धारा है, सूझता न कूल-किनारा है। ले लील भले यह धार मुझे, लौटना नहीं स्वीकार मुझे।
9. तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाके, पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखलाके।
10. मित्रता बड़ा अनमोल रतन, कब इसे तोल सकता है धन, धरती की तो है क्या बिसात, आ जाय अगर वैकुण्ठ हाथ।
हालांकि, वीर रस के हिंदी छंद, काव्य रचनाएं सिर्फ यहीं खत्म नहीं होते। भारत में कई वीर रस के कवि हुए हैं, जिन्होंने अपनी कलम से ऐसी रचनाएं की हैं जो दम तोड़ते इंसान में भी जान फूंक दे।