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Gustakhi Maaf: भारत अमेरिका के बीच आर्थिक संग्राम

-दीपक रंजन दास
भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक मोर्चे पर जंग छिड़ चुकी है. आज सात अगस्त से अमेरिका में भारतीय वस्तुएं महंगी होने वाली है. अमेरिका ने भारत से आयातित वस्तुओं पर 25 फीसद टैरिफ लगा दिया है. 27 अगस्त से टैरिफ की यह दर 50 प्रतिशत हो सकती है. इसके चलते भारतीय निर्यातकों को परेशानी हो सकती है पर इसका सीधा खामियाजा अमेरिका में रह रहे लोगों को भुगतना पड़ेगा. वहां कीमतें बढ़ेंगी जिसके कारण उन्हें ज्यादा खर्च करना पड़ेगा. दरअसल, अमेरिका भारत पर दबाव बनाना चाहता है. अमेरिका चाहता है कि वह भारतीय डेयरी एवं कृषि क्षेत्र में अपनी शर्तो पर प्रवेश करे. इसका सीधा सा मतलब यह है कि वह उत्पादों को यहां सस्ते में बेचकर स्थानीय डेयरी और कृषि उद्योग को तबाह कर दे. भारत इसके लिए तैयार नहीं है. भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर बातचीत का दौर जारी है पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ कर दिया है कि भारत अपने कृषि और डेयरी उद्योग की हर कीमत पर रक्षा करेगा, फिर चाहे इसके लिए उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े. प्रधानमंत्री ने कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामिनाथन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उनके शताब्दी समारोह में कहा कि भारत सुधारों के साथ आत्मनिर्भर हुआ है. भारत अपने कृषि और डेयरी क्षेत्र की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. राजनैतिक नेतृत्व को जो करना है, वह कर रहा है पर कुछ जिम्मेदारी हमारे यहां के नवधनाढ्य वर्ग की भी बनती है. जिस तरह ऑपरेशन सिन्दूर के बाद लोगों ने तुर्की और अजरबैजान के खिलाफ मोर्चा खोला, यदि वह एक बार अमेरिका के खिलाफ भी इसी तरह का मोर्चा खोल दे तो अमेरिका पर दबाव बन सकता है. पर यह उतना आसान भी नहीं होगा. भारत से विकसित देश अमेरिका को न केवल ब्रेन-ड्रेन होता है बल्कि यहां अमेरिकी उत्पादों के प्रति जबरदस्त आकर्षण भी है. उनका यह आकर्षण इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से लेकर कारों तक साफ दिखाई देता है. लोग अपनी साल भर की बचत को अमेरिका जाकर खर्च कर आते हैं. यदि अमेरिका भारत को डरा रहा है तो कुछ समय के लिए इन उत्पादों का बहिष्कार कर भारत उलटे अमेरिका पर भी दबाव बना सकता है. ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान यदि तुर्की, अजरबैजान और चीन ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ दिया था तो बाद की परिस्थितियों में अमेरिका भी उसके साथ खड़ा नजर आया था. भारत चाहे न चाहे उसे अपनी असली ताकत को समझना होगा. भारत की विशाल आबादी और उसकी बढ़ती क्रय शक्ति लगभग सभी विकसित देशों की नजर में है. यह एक बहुत बड़ा बाजार है जो किसी भी विकसित देश के लिए नियमित आय का स्रोत बन सकता है. वक्त है कि भारत अपनी इस ताकत को पहचाने. सीधी लड़ाई में भारत को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है पर यदि यह लड़ाई भावनात्मक धरातल पर लड़ी जाए तो अमेरिका के बोल सुधर जाएंगे.

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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