शहर में तेजी से भूजल स्तर में गिरावट आई है। उन इलाकों में भी अभी से वाटर लेवल कम हो गया है, जहां पिछले 15-20 वर्षों में कभी पानी की समस्या नहीं रही। सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने इंदौर को अत्यधिक दोहन की श्रेणी में रखा है। इसी बीच, शहर में सक्रिय निजी टैंकर संचालकों पर नगर निगम के अफसर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हुए हैं। टैंकर संचालकों के दबाव में ही एमआइसी में वह प्रस्ताव पास नहीं हुआ, जिसके तहत निजी बोरिंग से पानी के कमर्शियल उपयोग पर रोक लग जाती। ऐसे ही हालात रहे तो जल संकट के लिए चिन्हित शहरों में इंदौर का भी नाम शामिल हो जाएगा।
जितने पानी की मांग, उससे आधी ही सप्लाय
शहर की आबादी तेजी से बढ़ी है। प्रति व्यक्ति 150 लीटर तक पानी की प्रतिदिन खपत है। इस औसत से 700 से 800 एमएलडी पानी की मांग है, लेकिन नर्मदा जल और अन्य स्रोतों से 450 एमएलडी से ज्यादा पानी सप्लाय नहीं होता है। शहर में एक दिन छोड़कर पानी दिया जाता है। शेष पानी की आपूर्ति भूमि जल से होती है। भूजल उपयोग का आधा हिस्सा भी वापस जमीन में नहीं उतारने से हालात बिगड़े हैं।
बेंगलूरु, दिल्ली, बठिंडा, मुंबई और चेन्नई में बदहाली
जल संरक्षण के लिए यदि अब भी प्रयासों में कमी रही तो बेंगलूरु, दिल्ली, बठिंडा, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद जैसे जल संकट वाले शहरों की तरह इंदौर भी हो जाएगा। कम हुए वाटर लेवल और नर्मदा पानी की कम सप्लाय होने से टैंकर संचालक सक्रिय हो गए हैं। अधिकारी इन पर अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं। निजी बोरिंग के पानी के कमर्शियल उपयोग पर रोक लगाने के लिए अफसरों का प्रस्ताव टैंकर संचालकों के दबाव में एमआइसी में पास नहीं हो सका। निजी बोरिंग का पानी महंगे दामों पर बेचा जा रहा है।
यहां गिरा वाटर लेवल
बिचौली मर्दाना, सिलिकॉन सिटी, खंडवा रोड, निपानिया, देवास नाका, विजय नगर, गांधी नगर, एयरपोर्ट, छोटा बांगड़दा सहित एक दर्जन से अधिक स्थान।
तीन गुना दाम
गर्मी में 200 से अधिक टैंकर चलाने का दावा नगर निगम ने किया है, लेकिन ये नाकाफी हैं। मॉनिटरिंग की कमी से कई टैंकर निजी स्थानों पर पानी सप्लाय कर मोटी रकम ले रहे हैं। 500-600 रुपए का टैंकर 1200 से 1800 रुपए में निजी संचालक बेच रहे हैं। मालूम हो, बोरिंग का पानी बेचने के लिए सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड से अनुमति लेनी होती है। शहर में एक भी बोरिंग के लिए सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड से अनुमति नहीं ली गई है।