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दिहुली हत्याकांड: 1981 में हुई थी 24 लोगों की सामूहिक हत्या, 44 साल बाद तीन को फांसी की सजा, फैसला सुनने के बाद रोने लगे दोषी

मैनपुरी (एजेंसी)। फिरोजाबाद के जसराना के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 को हुई 24 दलितों की सामूहिक हत्या में मंगलवार को कोर्ट ने तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। इसके साथ ही दो दोषियों पर दो-दो लाख और एक दोषी पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। कोर्ट से आदेश होने के बाद पुलिस तीनों को जिला कारागार मैनपुरी ले गई। वहां उन्हें दाखिल किया गया।

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एडीजे विशेष डकैती इंदिरा सिंह की अदालत में सुबह 11.30 बजे दोषी कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को मैनपुरी जिला कारागार से भारी सुरक्षा के बीच लाकर पेश किया गया। इनकी पेशी के बाद 12.30 बजे करीब फिर से इनको दीवानी की अदालत में भेज दिया गया। लंच बाद कोर्ट से फिर इनकी पुकार हुई। दोपहर 3 बजे तीनों दोषियों को फिर से पुलिस ने कोर्ट में पेश किया। कोर्ट में अभियोजन की ओर से रोहित शुक्ला ने तमाम दलीलें पेश करते हुए नरसंहार के साक्ष्यों और गवाही का हवाला देते हुए फांसी की मांग की।

कोर्ट ने साक्ष्यों और गवाही के आधार पर उस भयावह नरसंहार के दोषी कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई। कप्तान सिंह, रामसेवक को दो-दो लाख और रामपाल को एक लाख रुपये के जुर्माने से भी दंडित किया गया। सजा सुनते ही तीनों के चेहरों पर मायूसी छा गई और रोने लगे। कोर्ट के बाहर इनके परिजन भी मौजूद थे, वह भी रोने लगे। इसके बाद पुलिस ने इन्हें जेल ले जाकर दाखिल कर दिया।

सजा पाने से पहले ही जेल में बेचैनी भरी रही तीनों की रात
दिहुली कांड के दोषी रामपाल, रामसेवक और कप्तान सिंह जिला कारागार मैनपुरी में सोमवार की रात को करवटें बदलते रहे। वह अपनी सजा के बारे में ही सोचते रहे। कप्तान सिंह सबसे अधिक बेचैन था। जिला कारागार के कर्मियों के अनुसार इन तीनों की नियमित निगरानी भी की जा रही थी। मंगलवार को तीनों समय से उठे और नित्य क्रिया के बाद कोर्ट जाने को तैयार हो गए। मगर, इनके चेहरों पर सजा पाने का अजीब सा खौफ साफ दिखाई दे रहा था। सोमवार शाम को खाना भी कम ही खाया था।

14 दिन जेल की क्वारंटीन बैरक में रहेंगे दोषी
कोर्ट द्वारा सजा सुनाकर जेल भेजे गए तीनों दोषियों को पहले 14 दिन के लिए क्वारंटीन बैरक में रखा जाएगा। मंगलवार शाम जेल पहुंचते ही उनको इस बैरक में भेज दिया गया। यहां उनकी नियमित निगरानी होगी। जांचा जाएगा कि वह समय से खाना-पीना ले रहे हैं या नहीं, सो रहा है या नहीं। 14 दिन के बाद उसको नियमित बैरक में भेजा जाएगा।

30 दिन के अंदर कर सकते हैं हाईकोर्ट में अपील
फांसी की सजा पाने वाले रामपाल, रामसेवक और कप्तान सिंह अपने कानूनी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए फांसी की सजा के खिलाफ 30 दिन के भीतर हाईकोर्ट में अपील भी कर सकते हैं। हाईकोर्ट सेशन कोर्ट के फैसले की समीक्षा के बाद अपना निर्णय लेकर फांसी की सजा को बरकरार रख सकती है या फिर सजा में संशोधन भी किया जा सकता है।

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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