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दुर्ग संभाग पर किसका कब्जा? तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों का गढ़ रहे दुर्ग संभाग का मिजाज है इस बार चौंकाने वाला

रायपुर (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। दुर्ग संभाग में लोकसभा की कुल जमा ढाई सीटें आती है। इनमें दुर्ग और राजनांदगांव के 17 विधानसभा क्षेत्रों के अलावा कांकेर के तीन विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश और फिर छत्तीसगढ को तीन-तीन मुख्यमंत्री देने वाले दुर्ग संभाग का मिजाज इस बार राजनीतिक दलों को चौंका सकता है। भले ही प्रत्याशी और पार्टियां अपनी-अपनी जीत के दावे-प्रतिदावे कर रहे हों, परंतु असल बात चेहरों और मुद्दों पर आकर टिक जाती है। नतीजों को अब ज्यादा वक्त नहीं है, लेकिन इससे पहले कयासों में ही प्रत्याशी की जीत-हार के दावे किए जा रहे हैं। दरअसल, कांकेर समेत दुर्ग और राजनांदगांव में इस बार कड़ा मुकाबला हुआ है और स्थितियां ऐसी हैं कि जीत का ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। इससे सबसे ज्यादा चिंता में सत्तारूढ़ दल है, जिसके नेता लगातार सभी 11 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं।

यह अजब संयोग ही था कि अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्व. मोतीलाल वोरा को कांग्रेस पार्टी ने राजनांदगांव सीट से चुनाव लड़वाया। वोरा पहली बार जीते लेकिन दूसरी बार वे इसी सीट पर डॉ. रमन सिंह से हार गए। यही डॉ. रमन जीत के बाद केन्द्र सरकार में मंत्री बनाए गए और मंत्री पद छोड़कर प्रदेश संगठन संभालने लौट आए। विधानसभा चुनाव हुआ तो पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री के पद से नवाजा। यानी दो पूर्व मुख्यमत्रियों के भाग्य का फैसला राजनांदगांव ने किया। मजे की बात है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनने वाले भूपेश बघेल के भाग्य का फैसला भी इस बार वही राजनांदगांव करने जा रहा है। कुछ अरसा पहले वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा का निधन हो गया था। जबकि तीन बार के मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष के पद पर विराजमान हैं। उनके गढ़ से भाजपा ने संतोष पाण्डेय को दूसरी बार प्रत्याशी बनाया है। पाण्डेय को डॉ. रमन का करीबी माना जाता है। ऐसे में सीधे तौर पर राजनांदगांव में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है।

राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्रांतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों की बात करें तो भाजपा बेहद कमजोर नजर आती है, लेकिन विधानसभा और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग मुद्दों के आधार पर लड़े जाते हैं। शायद यही वजह है कि 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो उसके अगले ही साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 11 में से 9 सीटों पर कब्जा जमाया था। दुर्ग संभाग में लोकसभा के नतीजों को लेकर इस बार भारी कश्मकश के हालात हैं। दुर्ग सीट को भाजपा जीता हुआ मानकर चल रही है तो कांग्रेस को यहां कड़े संघर्ष की उम्मीद है। जबकि राजनांदगांव सीट पर हालात इसके ठीक उलट हैं। इस सीट को कांग्रेस जीता हुआ मान कर चल रही है तो भाजपा कड़ी टक्कर की संभावना जता रही है। हालांकि भाजपा के तमाम प्रादेशिक नेता राज्य की सभी 11 सीटों पर जीत के दावे कर रहे हैं। इसके विपरीत कांग्रेस इस उम्मीद में है कि इस बार वह भाजपा से ज्यादा सीटें जीतने जा रही है। कांकेर सीट पर भी कांग्रेस की उम्मीदों भरी निगाहें टिकी हुई है। दुर्ग संभाग में आने वाली कांकेर की तीनों विधानसभा सीटों संजारी बालोद, डौंडीलोहारा और गुंडरदेही पर कांग्रेस का ही कब्जा है।

दो पूर्व सीएम की प्रतिष्ठा का प्रश्न
छत्तीसगढ़ की 11 सीटों में सबसे ज्यादा हॉट सीट राजनांदगांव की ही है। यहां की राजनांदगांव विधानसभा सीट से डॉ. रमन विधायक चुने गए और वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष हैं। वे यहां से सांसद रह चुके हैं। उनके पुत्र अभिषेक सिंह ने भी इसी लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया। भाजपा ने डॉ. रमन के करीबी संतोष पाण्डेय को दोबारा टिकट दिया तो उम्मीद की गई थी कि पार्टी इस सीट को आसानी से निकाल लेगी। लेकिन कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग का दाँव खेलते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मैदान में उतार दिया। शुरूआती दौर में पिछडऩे के बाद बघेल ने अपने चुनाव अभियान का रूख ग्रामीण क्षेत्रों की ओर मोड़कर बाजी अपने पक्ष में करने की भरसक कोशिश की। अब वे अपनी कोशिश में कितना कामयाब होते हैं, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, लेकिन कांग्रेस की समीक्षा में यह सीट जीती हुई मानी गई है। राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस का कब्जा है। बघेल ने सर्वाधिक फोकस इन्हीं 5 सीटों पर किया था। लम्बे समय से भाजपा का गढ़ रही राजनांदगांव लोकसभा सीट पर पार्टी इस बार भी बड़ी जीत का दावा कर रही है। वहीं कांग्रेस, भाजपा के इस गढ़ पर इस बार सेंधमारी में कामयाब होने की उम्मीद संजोए है।

सामाजिक समीकरण में कितना दम
दुर्ग लोकसभा क्षेत्र की चर्चा करें तो यहां सामाजिक व जातीय समीकरण सदैव हावी रहे हैं। इसलिए इस बार के नतीजे भी इसी आधार पर तय होंगे कि सामाजिक वोटों का कितना केन्द्रीयकरण हो पाया। इस लोकसभा क्षेत्र में साहू समाज का बाहुल्यता है, जबकि दूसरे नंबर पर कुर्मी हैं। यह कोई संयोग नहीं है कि भाजपा ने अपने उस निवृत्तमान सांसद विजय बघेल को फिर से मैदान में उतारा है, जो कुर्मी समाज से आते हैं। इससे आगे बढ़कर कांग्रेस ने बड़ा दांव खेलते हुए साहू समाज के राजेन्द्र साहू को उतारकर माहौल को पूरी तरह से गरमाया। इस लोकसभा चुनाव में इस बार की चर्चा बार-बार होती रही कि साहू समाज किसके पक्ष में है? दरअसल, यह समाज एकजुट होकर वोट करता रहा है और इसी एकजुटता के चलते नतीजे भी तय होते हैं। आमतौर पर माना जाता रहा है कि साहू समाज भाजपा के साथ खड़ा रहता है, लेकिन 2014 में जब कांग्रेस ने ताम्रध्वज साहू पर दांव लगाया तो उन्होंने एकतरफा जीत हासिल की थी। भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल दावा करते रहे हैं कि साहू समाज उनके साथ हैं। जबकि कांग्रेस के राजेन्द्र साहू कह चुके हैं कि साहू समाज अपने समाज के उम्मीदवार के साथ नहीं होगा तो किसके साथ होगा? कुल मिलाकर दुर्ग सीट पर हालात बेहद कश्मकश भरे हैं। माना जा रहा है कि साहू समाज के कुछ वोट जरूर छिटके हैं, लेकिन बहुधा वोटिंग सामाजिक एकजुटता के आधार पर ही हुई है। वहीं कुर्मी समाज के वोट भी काफी संख्या में कांग्रेस के पक्ष में इसलिए पड़े हैं, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं कुर्मी हैं। राजेन्द्र साहू को बघेल के सबसे करीबी लोगों में गिना जाता है।

किसके लिए निर्णायक होंगी कांकेर की 3 सीटें
कांकेर लोकसभा क्षेत्र की 3 विधानसभा सीटें दुर्ग संभाग में शामिल हैं। इनमें संजारी बालोद, आदिवासी आरक्षित डौंडीलोहारा व गुंडरदेही शामिल है। इन तीनों सीटों पर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कब्जा जमाया था। बावजूद इसके कि राज्य में भाजपा की सरकार बनी। भाजपा ने यहां से इस बार भोजराज नाग को तो कांग्रेस ने बिरेश ठाकुर को लोकसभा का उम्मीदवार बनाया। सिर्फ इन 3 सीटों का मिजाज कसौटी पर रखें तो भाजपा के लिए स्थिति चिंतनीय है। वास्तव में कांकेर लोकसभा सीट उन कुछ गिनी-चुनी सीटों में शुमार है, जहां कांग्रेस को जीत की पूरी-पूरी उम्मीद है। भाजपा यहां कड़ी टक्कर मानकर चल रही है। राजनीतिक दलों की समीक्षा और आम लोगों के कयासों के बीच नतीजों तक फिलहाल पहुंचना जल्दबाजी हो सकती है। मतदाताओं ने अपना निर्णय दे लिया है। प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला 4 जून को हो जाएगा। तभी यह स्पष्ट हो पाएगा कि किसके दावे में कितना दम है।

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