भिलाई। 53 वर्षीय इस महिला को पिछले 11 सालों में तीन-तीन स्ट्रोक (मस्तिष्काघात) हो गए। पहली बार उन्हें 2013 में मस्तिष्काघात के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसके बाद 2017 में वे एक बार फिर स्ट्रोक का शिकार हो गईं। इस बार 28 अप्रैल को उन्हें तीसरी बार अस्पताल लाया गया। दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ एक बार फिर उन्होंने स्ट्रोक को मात दे दिया और घर लौट गईं।
न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर नचिकेत दीक्षित ने बताया कि स्ट्रोक के मरीजों को अत्यधिक सावधान रहना पड़ता है। थोड़ी सी लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती है। इस बार महिला को जब हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल लाया गया तो उसके बायें हाथ एवं पैर में अत्यधिक कमजोरी के साथ ही उनकी जुबान लड़खड़ा रही थी। भोजन को निगलने में दिक्कत हो रही थी। बिना सहारे के वे खड़ी भी नहीं हो पा रही थी।
डॉ दीक्षित ने बताया कि इसे मेडिकल भाषा में हेमीपैरेसिस कहते हैं जिसे आधे शरीर का पक्षाघात कह सकते हैं। इसकी वजह से शरीर का संतुलन गड़बड़ा जाता है। मस्तिष्काघात, मेरूदंड में चोट या मेरूरज्जू में संकुचन या संवेदनावाही तंत्रिकाओं पर दबाव के कारण ऐसा हो सकता है। मरीज का तत्काल इलाज प्रारंभ किया गया जिसमें फिजियोथेरेपी शामिल थी। एक सप्ताह के इलाज के बाद मरीज की स्थिति काफी सुधर चुकी थी। उन्हें आवश्यक हिदायतों के साथ छुट्टी दे दी गई।
उन्होंने बताया कि लंबे समय तक चलने वाले इलाज में अकसर मरीज लापरवाह हो जाते हैं और दवाइयां नियमित रूप से नहीं लेते या उसे पूरी तरह छोड़ देते हैं। यही वजह है कि मरीज को बार-बार ऐसे संकटों का सामना करना पड़ता है। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। जब-जब मरीज ने दवा छोड़ी उसकी हालत फिर से बिगड़ गई। यदि वे लगातार दवाइयां लेती रहतीं और समय-समय पर फॉलोअप के लिए चिकित्सक के पास आती तो इस स्थिति को टाला जा सकता था।
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