-दीपक रंजन दास
इंग्लिश मीडियम स्कूल की पहली कक्षा का विद्यार्थी एकाएक खड़ा हो जाता है। पढ़ा रही मैम जब उसे सवालिया निगाहों से देखती है तो वह पूछता है-‘मैम! मे आई गो टू टॉयलेट?’ मैम सिर हिला देती है और वह पूरी तेज से कक्षा से बाहर निकल जाता है। सरकारी स्कूलों का छोटा बच्चा पूछता कुछ नहीं है। वह सिर्फ खड़ा हो जाता है और हाथ की छीनी उंगली (कनिष्ठा) दिखाता है। टीचर समझ जाती है और इशारे से उसे इजाजत दे देती है। प्रकृति के इस नियम को सहज स्वीकार्यता है, होनी भी चाहिए। पर सभी मैम एक जैसी नहीं होती। किसी-किसी को लगता है कि बच्चा शरारत कर रहा है। वह इजाजत नहीं देती। बच्चा काफी देर तक रोकने की कोशिश करता है और फिर पैंट गीली कर लेता है। इसके लिए बच्चे को दोष देना सही नहीं है। कुछ ऐसा ही हाल है सेक्स का। इस जरूरत को भी समाज कभी खुले दिल से स्वीकार नहीं कर पाया। इसलिए इसे हमेशा गुप्त रूप से चोरी छिपे अंजाम दिया जाता रहा। विवाह पूर्व या विवाहेत्तर संबंध कोई नई बात नहीं हैं। इसके उदाहरण पौराणिक काल में भी मिल जाएंगे। दुनिया भर में विवाहेत्तर संबंधों को लेकर राजनीतिक बवाल भी मचते रहे हैं। अमेरिका से लेकर भारत तक के कई वरिष्ठ और दमदार राजनयिकों का राजनीतिक करियर इसकी भेंट चढ़ चुका है। कुछ नेताओं ने राजभवन जैसी संस्थाओं को भी कलंकित किया है। एक नेतापुत्र के सेक्स स्कैंडल ने तो उनके प्रधानमंत्री बनने का रास्ता ही बंद कर दिया। मुगल काल में ताजमहल का निर्माण करने में लगे हुए मजदूरों के मनोरंजन के लिए कुछ ऐसी जातियों को आगरा में बसाया गया जो नाच-गाकर अपने घर से दूर पड़े इन मजदूरों का दिल बहलाते थे। इसकी आड़ में जिस्मफरोशी भी होती थी। ब्रिटिश शासनकाल में पहली बार ‘रेडलाइट एरिया’ का चलन प्रारंभ हुआ। ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी सेना की जरूरत के लिए इसे मंजूरी दी। आजादी के बाद भी अधिकांश राज्यों में ऐसे गांव और गलियां बनी रहीं। लोग इन्हें कोठा, बदनाम गली, आदि नाम से पुकारते रहे हैं। पर आजादी के लगभग 50 साल बाद कुछ राज्यों ने इसे बैन कर दिया। वहां की सरकारों को लगा कि यह संबंध चोरी छिपे ही ठीक है। पर सरकार के सोचने से क्या होता है। प्रकृति का रुख मोडऩे की आप चाहे जितनी भी कोशिश करो, पहाड़ी झरना अपनी राह खुद बना लेता है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की बाबूलाल गली मशहूर थी। 1990 से 1993 के बीच यहां जिस्मफरोशी को बंद करवाया गया। तब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा था। इसके बाद से ही जिस्मफरोशी के अड्डे कालोनियों में खुल गए। खाली पड़े फ्लैट इस धंधे के लिए किराए पर चलने लगे। मसाज सेन्टर और स्पा की आड़ में भी इसे अंजाम दिया जाने लगा। बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग-भिलाई हो या जगदलपुर कोई भी शहर इससे बचा नहीं है।
The post Gustakhi Maaf: मैम! मे आई गो टू टॉयलेट? appeared first on ShreeKanchanpath.