रायपुर। छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में स्थित गिधवा-परसदा आर्द्रभूमि परिसर राज्य का सबसे समृद्ध और सक्रिय पक्षी आवास क्षेत्र माना जाता है। गिधवा, गिधवा-2, परसदा, कूर्मू तथा एसएसएमटी जैसी जलाशयों से मिलकर बना यह परिसर स्थानीय और प्रवासी पक्षियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बेहतर प्रबंधन और अनुकूल प्राकृतिक वातावरण के कारण यह स्थल राज्य का प्रमुख पारिस्थितिक केंद्र बन चुका है। पक्षियों के प्रवास को देखने यहां हजारों पर्यटक आते हैं।
साल 2023 में किए गए जैव विविधता सर्वेक्षण के अनुसार यहां 104 मछलियों, 19 उभयचरों और 243 पक्षियों की प्रजातियां दर्ज की गईं। अक्टूबर से मार्च के बीच भारत, रूस, मंगोलिया, बर्मा, बांग्लादेश सहित कई देशों से हजारों प्रवासी पक्षी यहां आते हैं। इसी कारण गिधवा- परसदा परिसर छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय बर्ड-वॉक और प्रकृति अध्ययन केंद्र बन गया है।

इको-पर्यटन शिक्षा और सामुदायिक सहभागिता का केंद्र
वन मंत्री केदार कश्यप की पहल पर गिधवा-परसदा न केवल जैव विविधता का आश्रय स्थल बना है, बल्कि जनजागरूकता, प्रशिक्षण और प्रकृति-आधारित पर्यटन का उत्कृष्ट केंद्र भी बन रहा है। यहां आयोजित राज्य स्तरीय बर्ड फेस्टिवल, जनसहभागिता कार्यक्रमों और संरक्षण-उन्मुख गतिविधियों ने इसे एक प्रमुख प्रकृतिक शिक्षा केंद्र का रूप दिया है। इन आयोजनों में स्थानीय समुदाय, विद्यार्थी, प्रकृति प्रेमी और विशेषज्ञ सक्रिय रूप से शामिल होते हैं, जिससे न केवल जागरूकता बढ़ी है बल्कि स्थानीय आर्थिक अवसर भी विकसित हुए हैं।

फॉरेस्ट ट्रेल्स प्रकृति-आधारित शिक्षा का अनूठा स्थल
गिधवा-परसदा परिसर की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है यहां नियमित रूप से आयोजित बर्ड वॉक, फॉरेस्ट ट्रेल और नेचर ट्रेल जैसी गतिविधियाँ। इन ट्रेल्स में विद्यार्थियों और आगंतुकों को पक्षियों, पौधों और अन्य प्रजातियों की पहचान सिखाई जाती है। वन विभाग के प्रशिक्षित मार्गदर्शकों द्वारा पारिस्थितिकी, वन्यजीव संरक्षण और प्राकृतिक संतुलन के बारे में सरल और वैज्ञानिक जानकारी दी जाती है।
एक सफल संरक्षण मॉडल
सुदृढ़ प्रबंधन, स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी तथा निरंतर प्रशिक्षण-आधारित गतिविधियों ने गिधवा-परसदा को जैव विविधता संरक्षण और इको-पर्यटन का सफल मॉडल बना दिया है। यह परिसर आज न केवल छत्तीसगढ़ का सर्वाेत्तम बर्ड वॉक स्थल है बल्कि वैज्ञानिक महत्व, सामुदायिक सहभागिता और प्रकृति संरक्षण के उत्कृष्ट समन्वय का उदाहरण भी है।
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