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Gustakhi Maaf: इनकी आस्था के कण-कण में राम

-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ न केवल भगवान श्रीराम का ननिहाल है बल्कि वनवास के दौरान उन्होंने एक लंबा आरसा छत्तीसगढ़ की भूमि पर बिताया था। उन दिनों यहां केवल जंगल ही थे। वनवासियों की अच्छी खासी संख्या थी। उन दिनों यात्रा का मार्ग नदी किनारे से होकर गुजरता था। इससे जल की उपलब्धता सुनिश्चित होती थी। नदियों के किनारे के वनों में भोजन मिल जाता था। सभी जीव जंतु अपनी पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए 24 घंटे में कम से कम एक बार नदी किनारे भी आते ही थे। इस दौरान प्रभु श्रीराम का वनवासियों के साथ सम्पर्क हुआ। सदियां बीत गईं पर वनवासी समाज ने उन्हें कभी विस्मृत नहीं किया। श्रीराम ने अपने मृदु व्यवहार और परोपकारी आचरण से उनके दिल जीत लिये थे। शायद इसीलिए वनवासियों ने सोचा होगा कि राम नाम को उन्हें अपने जीवन में धारण कर लेना चाहिए। बच्चों के नाम राम को जोड़कर रखने के अलावा उन्होंने अपने नाम के आगे राम कहना शुरू कर दिया। आगे चलकर इसी को ब्रिटिश सरकार ने उनका सरनेम बना दिया। पहाड़ी कोरवा व बिरहोर के अलावा उरांव, अगरिया, नगेशिया सहित कई जनजातियों में व्यक्ति का नाम आज भी राम के बिना अधूरा है। जनजाति समुदाय का मानना है कि सभी जनजाति भगवान राम के आश्रित हैं, इसीलिए सभी राम के हैं। हालांकि उरांव, अगरिया सहित सभी जातियों के अपने अलग गोत्र भी हैं, पर इनका उल्लेख केवल शादी-ब्याह या पूजा-पाठ में ही किया जाता है। पर धर्मांतरण के बाद परिपाटी बदली। धर्मांतरित लोगों के नाम से राम हट गया। इसकी बजाय वहां गोत्र का उल्लेख होना शुरू हो गया। मिंज, एक्का, खलखो, लकड़ा यह सब उरांव जनजातियों के गौत्र हैं। जब राम की बात चली है तो रामनामी समुदाय की बात भी कर लेनी चाहिए। यह दुनिया की एकमात्र ऐसी जनजाति है जो अपने शरीर पर रामनाम का गोदना गुदवाती है। रामनामी समाज के संस्थापक परसुराम का जन्म 1870 के दशक में चारपोरा गांव में हुआ था। वह अपने माथे पर ‘रामÓ शब्द गुदवाने वाले संभवत: पहले व्यक्ति थे। 1890 के दशक में लोग उनसे जुडऩे लगे और अपने शरीर पर राम नाम गुदवाने लगे। परसुराम उस जाति से आते थे जो महाराष्ट्र और कर्नाटक के उत्तरी भाग में चमड़े का काम करते थे। इन्हें मंदिर में प्रवेश से वंचित किया जाता था जिसकी प्रतिक्रिया के स्वरूप परसुराम ने राम नाम का टैटू गुदवाया और स्वयं को राम के हवाले कर दिया। इस सम्प्रदाय की संख्या आज एक लाख से कम रह गई है। हालांकि नई पीढ़ी अपने पूरे शरीर के बजाय अब केवल बांहों पर राम का नाम लिखवाती है। इस सम्प्रदाय के लोग न केवल शरीर पर राम का नाम गुदवाते हैं बल्कि रामनामी ही ओढ़ते हैं। श्रीराम के प्रति ऐसा समर्पण और कहीं देखने को नहीं मिलता। यह राम-नाम का ही प्रभाव है कि छत्तीसगढ़ आज भी देश का सबसे शांत प्रदेश है।

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