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Gustakhi Maaf: इसी बहाने बोरे-बासी की चल पड़ी

-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ में सन् 2020 के बाद बोरे-बासी दिवस एक बार फिर सुर्खियों में है. पर इस बार मामला अलग है। बोरे-बासी को पहले केवल गरीब और मजदूर वर्ग का भोजन माना जाता था। पढ़े लिखे लोग इससे किनारा कर जाते थे फिर भले ही लू से उनकी जान क्यों न चली जाए। बता दें कि सुबह-सुबह हाथ में जर्मन के बर्तनों में बोरे-बासी लिये मजदूरों को काम पर जाते हुए देखना एक सुखद अहसास रहा है। तपती धूप में बासी-बोरे वह सबसे सस्ता उपाय है जो पेट को ठंडा रखने के साथ ही शरीर में पानी की तरावट को बनाये रखता है। छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि ओडीशा और बंगाल में भी बोरे-बासी का चलन है। ओडीशा में जहां इसे ठंडा और गर्म पखाल के नाम से जाना जाता है वहीं बंगाल में इसे पांता भात कहा जाता है। इस पारम्परिक व्यंजन को गरिमा प्रदान करने की कोशिश सबसे पहले ओडीशा में शुरू हुई जहां 2015 से प्रत्येक 20 मार्च को पखाल दिवस मनाया जाने लगा। पश्चिम ओडीशा के बड़े-बड़े होटलों में भी पखाल एक विशेष व्यंजन की तरह परोसा जाता है। छत्तीसगढ़ में भी इस पारम्परिक व्यंजन को सम्मान देने के लिए 2020 में तत्कालीन सरकार ने मजदूर दिवस पर बोरे-बासी दिवस मनाने का निर्णय लिया। पर सरकार बदलने के बाद बोरे-बासी दिवस पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे। इस बात की भी चर्चा होती रही कि नई सरकार की इसमें तनिक भी रुचि नहीं है। जब बात बिगड़ती दिखी तो सरकार ने आनन-फानन में बोरे-बासी दिवस मनाने का फैसला कर लिया। इसके लिए तेजी से फाइलें चलीं और करोड़ों रुपए फूंक दिये गये। इतने कम समय में टेंडर प्रक्रिया संभव नहीं थी इसलिए जो एकमात्र कंपनी लिस्टेड थी, उसे ही काम दे दिया गया। घर में इफरात पैसे हों तो श्वान का भी बर्थडे मनाया जा सकता है। 8 करोड़ 70 लाख रुपए का बिल बना। 3 लाख रुपए का तो फूलों का डेकोरेशन ही हो गया। 1500 रुपए कटोरा बोरे-बासी खाने के लिए 150 वीआईपी भी जुटा लिये गये। इसके अलावा 200 लोगों ने प्रति व्यक्ति 600 रुपए का नाश्ता भी किया। क्या मजाक है? जहां तक बोरे-बासी का सवाल है – इसे सबसे ज्यादा इज्जत बख्शी थी कापालिक शैली में पंडवानी गायन करने वाली प्रथम महिला पद्मभूषण तीजन बाई ने। उन्होंने न केवल पंडवानी की कापालिक शैली को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया बल्कि देश-विदेश में इसके सैकड़ों कार्यक्रम कर डाले। कद चाहे कितना भी बढ़ गया पर उन्होंने अपने पारम्परिक खान-पान को कभी नहीं छोड़ा। वे गर्व से कहती रहीं कि फ्रांस हो या लंदन, हर जगह उन्होंने बोरे-बासी और चटनी खाकर ही पंडवानी प्रस्तुत किया है। यही नहीं जब-जब उन्हें पद्मपुरस्कार प्राप्त करने के लिए राजधानी दिल्ली बुलाया गया, वे अपना प्रिय बोरे-बासी खाकर ही वहां गईं। कायदे से तो उन्हें छत्तीसगढ़ का बोरे बासी एम्बेसेडर बनाया जाना चाहिए था। बोरे-बासी और राज्य दोनों गौरवान्वित होते।

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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