-दीपक रंजन दास
जब से सीज फायर की घोषणा हुई है देश के प्रत्येक तबके से असंतोष के स्वर उठ रहे हैं। यहां तक की सेना के भूतपूर्व अधिकारी भी चाहते थे कि इस बार मौका मिला है, पाकिस्तान घुटने पर आ गया है तो पाक अधिकृत कश्मीर पर आर-पार हो ही जाना चाहिए। स्वयं प्रधानमंत्री अपने तेवर साफ करते रहे हैं कि आतंक के खिलाफ जीरो टालरेंस रहेगा और किसी भी आतंकी कार्रवाई को ऐक्ट ऑफ वार माना जाएगा। ऐसे हमलों का कैसा जवाब देना है इसे सेना पर छोड़ दिया गया है। लोग इस बात से भी नाखुश हैं कि बदमाश अमेरिका ने एक बार फिर मध्यस्थता करने का श्रेय ले लिया है। देश के हिन्दू और मुसलमान दोनों ही कश्मीर पर किसी बाहरी देश की मध्यस्थता के खिलाफ हैं। वे इसे अपनी सरजमीन का आंतरिक ममला मानते हैं। सीज फायर को लेकर भारतीय सेना ने अपना पक्ष भी साफ कर दिया है। इस बात के टेलीफोन रिकार्ड पेश कर दिये गये हैं कि पाकिस्तान के डायरेक्टर जनरल मिलिटरी ऑपरेशन्स ने सुबह पहले फोन किया था। इसके बाद भारतीय डीजीएमओ ने दोपहर को उनसे बात की और शाम को इसकी घोषणा कर दी गई। अर्थात सीज फायर का आग्रह पाकिस्तान की तरफ से किया गया था। फिर ऐसा क्या हो गया कि लोग इसे लेकर अपनी नाराजगी जाहिर करने लगे। दरअसल, पाकिस्तान ने सीज फायर का जश्न मनाया। उसने दुनिया के मंच पर ऐसा दिखाया जैसे इस संघर्ष में वह भारत पर भारी पड़ा है और अमेरिका की मध्यस्थता में उसे संघर्ष विराम करना पड़ा है। सवाल यह भी उठता है कि भारत ने युद्ध विराम को आखिर स्वीकार क्यों किया? इसका जवाब देना उतना भी मुश्किल नहीं है। भारत जानता है कि पाकिस्तान में अमेरिका और चीन दोनों की दिलचस्पी है। जाहिर तौर पर भले ही ये देश आतंकवाद के खिलाफ दिखाई देते हैं पर मौका मिलते ही ये पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आएंगे। भारत तेजी से विकास कर रहा है और अब तो वह सामरिक रूप से भी इतना सक्षम हो गया है कि दुनिया उसकी ताकत देखकर हैरत में है। भारत ने जिन स्वदेशी आयुधों का उपयोग इस युद्ध में किया, वह विकसित देशों की कल्पना से भी परे था। चार दिन की लड़ाई और हो जाती तो अमेरिका और चीन से पाकिस्तान को खैरात में मिले हथियारों की पोल पूरी की पूरी खुल जानी थी। इसलिए युद्ध विराम की गरज अमेरिका और चीन को पाकिस्तान से कहीं ज्यादा थी। दूसरे भारतीय नेतृत्व भी इस बात को जानता है कि आज दुनिया पूरी तरह से एक दूसरे पर निर्भर है। इसलिए युद्ध जीतने से ज्यादा जरूरी अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बचा कर रखना है। इसलिए भारत फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। वह युद्ध की घोषणा करने से बच रहा है और उसकी सैन्य कार्रवाई भी बेहद संयमित है। वह नहीं चाहता उसपर कोई उंगली उठे।

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