-दीपक रंजन दास
आस्था पूर्ण विश्वास का पर्यायवाची है. इसका एक भावपक्ष भी होता है. जिस चीज में लोगों की आस्था होती है, उसपर वो सवाल-जवाब पसंद नहीं करते और न ही किसी तरह की चर्चा करना चाहते हैं. यदि लोगों की आस्था है कि इस मंदिर में पूजा करने से संतान होती है तो वह बिना कोई सवाल पूछे वहां जाते हैं. शायद यही ईश्वर की सार्थकता है. जब चीजें आपके नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, जब आपको कुछ नहीं सूझता, जब विज्ञान भी हथियार डाल देता है तब आप जिस प्रकृति के पास जाते हैं, वही ईश्वर है. यदि आप आस्थावान हैं तो इसके बाद आप काफी हद तक निश्चिंत हो जाते हैं. सभी को यह मानना पड़ता है कि ईश्वर की यही मर्जी थी. इसके ठीक विपरीत विज्ञान सवाल पूछता है और उसके जवाब ढूंढता है. जवाब भी ऐसा जिसे वह औरों को बता और समझा सके. आवश्यकता पड़ने पर प्रमाणित भी करके दे सके. इसलिए आस्था में विज्ञान हो सकता है पर विज्ञान आस्था के दम पर नहीं चल सकता. यहीं से दोनों के रास्ते अलग हो जाते हैं. अब आते हैं आस्था की राजनीति पर. उत्तर प्रदेश का संभल जिला इन दिनों सुर्खियों में है. संभल महात्म्य के अनुसार यहां 68 देवतीर्थ और 19 महाकूप हैं. संभल महात्म्य लगभग एक हजार साल पुराना है और स्कंद पुराण का हिस्सा है. सरकार का दावा है कि अब देवतीर्थों और महाकूपों की पहचान की जाएगी और वहां से अवैध कब्जा और अतिक्रमण हटाया जाएगा. प्रशासन ने अब तक 42 तीर्थ और 16 कुओं की पहचान कर ली है. अब आते हैं इस राजनीतिक स्टंट के मूल पर. जो लोग संभल के नहीं हैं, किसी भी रूप से संभल से नहीं जुड़े हैं और न ही कभी वहां गए हैं उन्हें ऐसा लग सकता है कि विदेशी आक्रांताओं ने इन मंदिरों को तोड़ दिया और कुओं को मिटा दिया. आस्था के नाम पर उनका जोश उबाल मार सकता है. पर एक समाचार पत्र समूह ने इसका जमीनी सर्वेक्षण करने का बीड़ा उठा लिया. जब मीडिया की टीम वहां पहुंची तो अधिकांश मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में मिले. कुछ मंदिरों की हालत अच्छी थी जहां लोग आज भी पूरी आस्था के साथ पूजा पाठ कर रहे थे. कुएं भी खस्ता हालत में मिले. इनका पानी उपयोग करने के योग्य नहीं था. अर्थात कहीं भी उन्हें कोई कब्जा नहीं मिला. इनमें से किसी भी मंदिर में कोई तोड़ फोड़ नहीं हुई थी. पारीवारिक झगड़ों और मनमुटाव के कारण कुछ मंदिरों पर या ताला लटका हुआ था या उन्हें छोड़ दिया गया था. दरअसल, जामा मस्जिद में मंदिर के दावे के बाद पिछले साल 24 नवम्बर को वहां सर्वे शुरू किया गया. इस दौरान वहां हिंसा भड़की जिसमें 4 लोगों की मौत हो गई. इसके बाद प्राचीन कल्कि मंदिर सहित शेष तीर्थों पर कब्जे की संभावना को लेकर सर्वे शुरू हो गया.

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