-दीपक रंजन दास
दिल्ली सरकार की ढुलमुल नीतियों के कारण दिल्ली में शराब की पर्याप्त बिक्री नहीं हो पाई। इसके कारण सरकार को राजस्व की हानि हुई। यह खुलासा कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) की रिपोर्ट में सामने आई थी। दिल्ली सीएम रेखा गुप्ता ने 25 फरवरी को इस रिपोर्ट को सदन के सामने रखा था। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक गलत शराब नीति के कारण सरकार को 2002 करोड़ रुपए का नुकसान हो गया। इसमें से 941.53 करोड़ का नुकसान इसलिए हो गया कि नॉन कंफर्मिंग म्यूनिसिपल वाड्र्स में दुकानें खोलने की परमिशन समय पर नहीं दी गई। इसी तरह जिन लाइसेंसों को ठेकेदारों ने सरेंडर कर दिया, उनका दोबारा टेंडर करने में सरकार असफल रही। इसके कारण सरकार को 890.15 करोड़ रुपए का नुकसान हो गया। इससे एक बात तो साफ हो गयी कि जो लोग सरकारी ठेकों या दुकानों से शराब पीते हैं, यदि सरकारी दुकानें बंद हों तो वो शराब नहीं पीते। कुछ वार्डों में दुकानों के नहीं खुलने से सरकार को हुआ घाटा इसका बड़ा प्रमाण है। वैसे एक बात समझ में नहीं आती। शराब और शराबियों को लेकर भारतीय समाज असहज है। जो शराब सभी मुसीबतों की जड़ है, आखिर उससे होने वाली कमाई पर यह गिद्धदृष्टि क्यों? नहीं बिकी शराब, नहीं हुई कमाई तो इतनी हायतौबा क्यों? लोगों को तो उलटे खुश होना चाहिए। तालियां बजानी चाहिए कि सरकार की नीतियों के कारण शराब की बिक्री कम हुई। सीबीआई और ईडी के मुताबिक आम आदमी पार्टी नेताओं ने शराब लाइसेंस देने के नियम तोड़े। कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचाया और करीब 100 करोड़ रुपए की रिश्वत ली, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। इस मामले में कई गिरफ्तारियां हुईं और बाद में एक-एक कर सभी जमानत पर छूट गए। यह विवादित पॉलिसी एक साल से भी कम समय तक प्रभावी थी। नवंबर 2021 में यह पॉलिसी लाई गई थी जिसे सितम्बर 2022 में रद्द कर दिया गया था। अब एक नजर इस अवधि में दिल्ली सरकार को शराब से हुई कमाई पर भी डाल लें। दिल्ली सरकार को 2021-22 के दौरान शराब की बिक्री से 5487 करोड़ की कमाई हुई थी। 2022-23 में यह और बढ़कर 5547 करोड़ हो गई। पर 2023-24 में यह गिरकर 5,164 करोड़ रह गई। अर्थात नई शराब नीति के आने के बाद सरकार की कमाई में बढ़ोत्तरी ही हुई थी। तो फिर केवल दस महीने के लिए प्रभावी रही शराब नीति के कारण 40 फीसदी का नुकसान कैसे हो गया। हालांकि यह नुकसान आंकड़ों में दिखाई नहीं देता। बहरहाल, शराब घोटाले के हो-हंगामे ने कईयों का राजनीतिक करियर चौपट कर दिया। आरोपों को मान लें तो फकत 100 करोड़ रुपए की खातिर आप ने अपनी सरकार को दांव पर लगा दिया। यह तो बहुत बुरी बात है। इससे ज्यादा रकम तो दूसरी सरकारें यूं ही दान में दे देती हैं। जनता के पैसों से दाम और उसपर अपना नाम।

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