-दीपक रंजन दास
धर्म के नाम पर लोगों को लड़वाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने वालों ने धर्म का हमेशा नुकसान ही किया है. कुछ ऐसा ही हुआ पश्चिम बंगाल के मालदह जिले में. यहां मोथा बाड़ी में 27 मार्च को दो गुटों के बीच जमकर हिंसा हुई. हिंसक भीड़ ने दुकानों में तोड़फोड़ की, उन्हें लूट लिया, लोगों से मारपीट की और वहां खड़ी गाड़ियों को भी तोड़ डाला. मामले में 34 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया गया है. घटना के बाद से इलाके में इंटरनेट बंद है. आर्म्ड और रैपिड एक्शन फोर्स की तीन कंपनियां तैनात की गई हैं. कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक से 3 अप्रैल तक एक्शन रिपोर्ट मांगी है. दरअसल, 26 मार्च को मोथाबाड़ी मस्जिद में नमाज हो रही थी. तभी वहां से एक जुलूस गुजरा. जुलूस में शामिल कुछ लोगों ने धार्मिक नारे लगाए. दूसरे दिन दूसरे समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया और तोड़फोड़ मचा दी. इस दहशत गर्दी के क्या मायने? इससे किसे फायदा? जिसने तोड़फोड़ और हिंसा की क्या उन्हें इस बात का इल्म भी है कि इस घटना का इस्तेमाल अब दुनिया भर में उसकी कौम को बदनाम करने के लिए किया जाएगा? जिन लोगों ने नमाज के दौरान नारेबाजी की, क्या वो नहीं जानते थे कि इस उकसावे का कैसा परिणाम आ सकता है? कौन सा धर्म ऐसा है जो हिंसा सिखाता है? ऐसी कौन सी प्रार्थना है जो मार-काट मचाने के लिए लोगों को उकसाती है. दरअसल, ये मामला धर्म का है ही नहीं. ये तो अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने की जद्दोजहद मात्र है. धर्म की गलत-सलत व्याख्या करने की नई परिपाटी ही ऐसी घटनाओं के लिए भी जिम्मेदार है. कहते हैं धर्म खतरे में है. आपका कर्तव्य ही आपका धर्म है. यह व्याख्या किसी संत, महात्मा या मनुष्य ने नहीं बल्कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने की थी. आप कलेक्टर हो, एसपी हो, शिक्षक या प्राध्यापक हो, सामान्य व्यापारी या जनप्रतिनिधि हो तो अपने-अपने काम को पूरी ईमानदारी औऱ सत्यनिष्ठा के साथ करो. कौन रोक रहा है आपको? ऐसे घटनाओं को रोकने में सबसे बड़ी भूमिका कलेक्टर, एसपी और जनप्रतिनिधि की होती है. न तो जाति देखकर किसी को कलेक्टर, एसपी बनाया जाता है और न ही किसी कौम विशेष के वोटों से कोई जनप्रतिनिधि चुना जाता है. आपकी जिम्मेदारी सबके प्रति समान है. ऐसी घटनाओं की रोकथाम करना और ऐसी भावनाओं को जड़ से नष्ट करना ही आपका धर्म है. पर हमारे नेताओं और प्रवचनकारों को इससे इत्तेफाक नहीं. क्या यह शर्मनाक नहीं है कि ईद, हनुमान जयंती या रामनवमी का त्यौहार मनाने से पहले शांति समिति की बैठक बुलानी पड़े, पुलिस को फ्लैगमार्च करना पड़े? ये पर्व सभी शहरों में एक साथ मनाए जाते हैं पर कुछ शहरों ने अपन रिकार्ड खराब कर लिया है. अफसोस यह है कि ऐसे शहरों की संख्या बढ़ रही है. इस जख्म को नासूर बनने से रोकना होगा.

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