-दीपक रंजन दास
घायल घोड़े और पागल कुत्ते को मार दिया जाता है. इस हत्या के दो पहलू हैं. एक तरफ तो ये हिंसा है जिसका समर्थन नहीं किया जा सकता. किसी का जीवन छीनने का हमें कोई अधिकार नहीं है. पर इसका एक पहलू और है. घायल घोड़ा बेहद तकलीफ में कुछ दिनों बाद दम तोड़ देता है. पागल कुत्ते के बारे में तो सभी जानते हैं. यदि इस दृष्टिकोण से देखें तो यह एक ‘मर्सी किलिंग’ अर्थात दया मृत्यु है. लाइलाज और तकलीफदेह बीमारी से निजात दिलाने के लिए इंसानों में भी मर्सी किलिंग की मांग समय-समय पर उठती रही है. इसे यूथनेसिया के नाम से जाना जाता है. अर्थात जब जीवन बेहद कष्टप्रद या असहाय हो जाए और भविष्य में व्यक्ति के ठीक होने की कोई संभावना न हो तो उसे कष्टों से मुक्त करने के लिए मृत्यु की इजाजत दे देनी चाहिए. हालांकि यह एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है जिसपर लगातार गंभीर बहसें होती रही हैं. पर उन लोगों का क्या जो अपनी जुबान से हजारों-लाखों लोगों के जीवन को संकट में डाल देते हैं? एक पागल कुत्ता ज्यादा से ज्यादा 10-15 लोगों को काट सकता है पर एक गंदी जुबान तो एक पूरी पीढ़ी को संकट में डाल सकती है. हत्यारों और बलात्कारियों के खिलाफ जनाक्रोश उमड़ पड़ता है. उन्हें चौराहे पर खड़ा कर गोली मार देने या फांसी पर लटका देने की मांग की जाती है. कोई कहता है अपराधी का अंग-भंग कर उसे सार्वजनिक रूप से सजा दी जाए. हत्यारे और बलात्कारी तो सीमित संख्या में लोगों को प्रभावित करते हैं पर जो लोग एक पूरी कौम को गुनहगार ठहराकर राष्ट्रीय भाईचारे को छिन्न भिन्न कर देते हैं, उनके खिलाफ ऐसी कोई आवाज नहीं उठती. औरंगजेब को मरे 318 साल हो गए. बाबर को मरे भी 495 साल हो गए. उन्होंने अच्छा किया, बुरा किया, जो भी किया वह इतिहास में दर्ज हो चुका है. आप लाख सिर पटक लें, उसे बदल नहीं सकते. मुग़लों ने 1526 से भारत के कुछ हिस्सों पर शासन करना शुरू किया और 1700 तक अधिकांश उपमहाद्वीप पर शासन किया. पर इसका मतलब यह नहीं था कि भारतवंशी राजाओं का अंत हो गया था. वो तब भी थे जब अंग्रेज यहां आए. एक राजा दूसरे राजा से लड़ता था. कभी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए तो कभी गद्दी पर अवैध कब्जा करने के लिए वह षडयंत्र रचता था. कभी मुगलों का तो कभी अंग्रेजों का समर्थन हासिल करता था. लगातार संघर्ष के इस दौर ने एक से एक प्रतापी योद्धाओं को उभरने का मौका दिया तो वहीं गद्दारों की भी एक पूरी कतार खड़ी हो गई. ये दोनों ही हमारी विरासत का हिस्सा हैं. माता-पिता, भाई-बहन और स्वजन आपको विरासत में मिलते हैं. आप सिर्फ पत्नी चुन सकते हैं. अक्लमंदी इसी में है कि आप वर्तमान पर फोकस करें. इतिहास को दोबारा या तिबारा लिखने से कुछ नहीं होने वाला.

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