-दीपक रंजन दास
उत्तर प्रदेश के दिहुली गांव में 24 लोगों का नरसंहार हुआ था। यह सजा थी एक दलित के अगड़ी जाति की युवती से प्यार करने की। नरसंहार के वक्त दिहुली फिरोजाबाद में आता था जो बाद में मैनपुरी जिले में चला गया। 18 नवंबर 1981 को यहां उच्च जाति के लोगों ने हमला किया। ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर 24 दलितों की जान ले ली। मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। 17 लोगों को आरोपी बनाया गया था। मुख्य आरोपी सहित 13 लोगों की स्वाभाविक मौत हो चुकी है। एक आरोपी आज तक फरार है। शेष बचे तीन को 44 साल बाद फांसी की सजा सुनाई गई है। घटना के समय प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी, गृह मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, राज्य के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी एवं नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी में से कोई भी आज जीवित नहीं है। 1981 में भारत को स्वतंत्र हुए 34 साल गुजर चुके थे। संविधान को लागू हुए भी तीन दशक बीत चुके थे। पर कुछ राज्यों में तब भी दबंगों की सल्तनत कायम थी। बिना सुनवाई के फैसला करते, समूह में दण्ड देते और पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती। जिन्हें इंकार करना हो, वो इंकार करते रहें, चाहें तो शुतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना सिर छिपा लें पर उन दिनों की यही हकीकत थी कि ऊंची जाति के लोगों की नजर में नीची जाति के लोगों की हैसियत कीड़े मकोड़े जितनी भी नहीं थी। गांव के गांव जला दिये जाते थे। हत्या, लूटपाट और बलात्कार का ऐसा नंगा नाच होता था कि उसकी यादें भी सिहरा देने के लिए काफी हैं। यह नरसंहार क्यों हुआ, इसकी भी एक कहानी है। इस हत्याकांड के पीछे डकैत संतोष, राधे और उनके गिरोह का हाथ था। इस गिरोह में दलित समुदाय का कुंवरपाल भी शामिल था। कुंवरपाल को अगड़ी जाति की एक युवती से प्यार हो गया। जब इसका पता गिरोह को चला तो उसने कुंवरपाल की हत्या कर दी। इसके बाद पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया। अगड़ों को संदेह था कि आरोपियों की शिनाख्त और गिरफ्तारी में दिहुली के गांव वालों ने सहयोग किया था। दिहुली के गांव वालों को इसी अपराध की सजा दी गई थी। इस नरसंहार के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, गृहमंत्री बीपी सिंह, मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेई भी पीडि़तों का दर्द बांटने दिहुली गांव पहुंचे थे। बावजूद इसके फैसला आते-आते 44 साल लग गए। वह भी तब जब ऐसे अपराधों के लिए यूपी में स्पेशल कोर्ट की व्यवस्था है। बता दें, उत्तर प्रदेश डकैती प्रभावित क्षेत्र अधिनियम 1983 में बना था। क्या ऐसा नहीं लगता कि पूरा सिस्टम इस मामले को टालने में लगा हुआ था? क्या इतनी देर से मिले न्याय को भी न्याय कहा जा सकता है? सजा लोअर कोर्ट ने सुनाई है। अभी इसमें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाने का रास्ता खुला है।

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