छत्तीसगढ़

मामला 2021 का है जिसमें कलर ब्लाइंड आरक्षकों को नॉर्मल लिखकर फर्जी हस्ताक्षर

कवर्धा :- मामला 2021 का है जिसमें कलर ब्लाइंड आरक्षकों को नॉर्मल लिखकर फर्जी हस्ताक्षर करने का है जिसमें लगभग सैकड़ों आरक्षकों का मेडिकल जांच हुआ नेत्र विभाग में जांच के दौरान कलर ब्लाइंड मिलने पर नेत्र सहायक अधिकारी मनीष जॉय ने तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर सुरेश तिवारी को जानकारी दिया गया रेफर करने साथ ही शाखा प्रभारी दीपक ठाकुर को भी बताया गया कि इन्हें रेफर लेटर बना दो किंतु उनका रेफर नहीं बनाया और जिले से ही जानकारी होने के बाद शाखा प्रभारी दीपक ठाकुर और सिविल सर्जन द्वारा फर्जी मेडिकल प्रमाण पत्र दे दिया गया।। ये नौकरी करने लगे लगभग 2 माह बाद जानकारी मिलने पर पुलिस अधीक्षक को जानकारी दी गई पुनः जांच हुआ कलर ब्लाइंड मिलने पर इन्हें बर्खास्त किया गया लेकिन शिकायत का केंद्र बिंदु फर्जी हस्ताक्षर किसने किए किसने झूठी जांच लिखा मेडिकल स्पेशलिस्ट होने के बावजूद उनका सदस्य के रुप में हस्ताक्षर नहीं कराया गया 4 सदस्यों का जहां हस्ताक्षर होना था वहां मात्र 2 सदस्यों का हस्ताक्षर किया गया फोरम को पूरा किए बगैर प्रमाण पत्र दे दिया गया

सवाल उठता है कि शिकायत पर विभाग गम्भीर क्यों नहीं हुआ FIR पर कार्यवाही क्यों नहीं हुआ दोषियों को बचाने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार के नेताओं के इशारे पर शिकायतकर्ता मनीष जॉय को जिले से बाहर स्थानांतरण कर दिया गया था।वहीं दोषी प्रभात चन्द्र प्रभाकर और दीपक ठाकुर का स्थानांतरण किया गया जिसमें डॉक्टर प्रभाकर ko सीएमएचओ पेंड्रा बनाया गया दीपक को सीएमएचओ कार्यालय कवर्धा में ही लेखापाल बना दिया गया। मामले में प्रारम्भिक जाँच डॉ बी एल राज ने किया
डॉ बी एल राज ने अपने जांच में, प्रमाण पत्र जारी करने वाले सिविल सर्जन डॉ सुरेश कुमार तिवारी और जिन आरक्षकों के साथ फर्जीवाड़ा हुआ उनका बयान ही नही लिया। डॉ बी एल राज के जांच प्रतिवेदन अनुसार डॉ स्वप्निल तिवारी ने बयान दिया है कि जब आवेदक आवेदन लेकर आये तब उनके प्रमाण पत्र में बी पी/शुगर का जांच किया गया था। आवेदन में सबसे पहले मैंने हस्ताक्षर किया है। डॉ प्रभांत चन्द्र प्रभाकर ने बयान दिया है कि नव आरक्षक डेविड लहरे और खेमराज का बी पी पल्स चेस्ट का जांच किया और हस्ताक्षर किया है। डॉ स्वप्निल तिवारी और डॉ प्रभांत चंद्र प्रभाकर का बयान आपस मे एक दूसरे का विरोध करते है। बता दें कि जिला अस्पताल कवर्धा में मेडिसिन विशेषज्ञ डॉक्टर नमिता वाल्टर उक्त आरक्षकों को उनके ओ पी डी पर्ची में ई सी जी एक्स रे व अन्य टेस्ट कराने के लिए लिखी थी। जांच अधिकारी डॉ बी एल राज एक डॉक्टर होने के नाते मेडिकल बोर्ड में मेडिसिन विशेषज्ञ की भूमिका बहुत ही अच्छे से जानते है। आरक्षकों के सर्टिफिकेट में मेडिसिन विशेषज्ञ का हस्ताक्षर ही नहीं है।
डॉ बी एल राज ने आधे अधूरे जांच करके अपना जांच प्रतिवेदन दे दिया। अपने प्रतिवेदन में शिकायतकर्ता नेत्र सहायक अधिकारी श्री मनीष जॉय एवं लिपिक श्री दीपक सिंह ठाकुर को दोषी ठहराया दिया। डॉ बी एल राज ने झुठी जांच रिपोर्ट लिखकर फर्जी हस्ताक्षर करने वाले आरोपी तक पहुचे बिना ही जांच समाप्त कर अपना प्रतिवेदन दिया है जिसके कारण जांच में सवाल खड़े होना लाजिमी है आखिर क्यों फर्जी हस्ताक्षर करने वाले तक पहुंचने के पहले जांच समाप्त किया गया ? सिविल सर्जन डॉ सुरेश कुमार तिवारी और बर्खास्त आरक्षकों का बयान क्यों नही लिया गया? डॉ प्रभाकर और डॉ स्वप्निल तिवारी का परस्पर विरोधी बयानबाजी के बाद भी क्यों कोई निष्कर्ष तक नहीं पहुचे ?

विभागीय सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक मेडिकल फर्जीवाड़ा को अंजाम देने वाले आरोपियों पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कद्दावर मंत्री के नुमाइंदों का वरदहस्त रहा है इसलिए दिशाहीन दूषित जांच करके मामले को रफादफा करने के लिए जांच जांच का खेल खेला गया। गौर से देखे तो ऐसा लगता है मानो इस खेल में बहुत ही शातिराना अंदाज में मामले के दोषी डॉक्टरों को बचाने का भरसक प्रयास किया गया है। इस जांच में एक डॉक्टर का दूसरे डॉक्टर पर अटूट प्रेम छनकर बाहर निकलता है।
प्रारम्भिक जांच जो ख़ुद फर्जी दिख रहा हैं उसी आधार पर शिकायतकर्ता नेत्र सहायक अधिकारी मनीष जॉय का संभागीय संयुक्त संचालक डॉक्टर प्रशांत शुक्ला ने एक वेतन वृद्धि रोक दिया जिससे मानसिक प्रताड़ित मनीष जॉय ने उच्च अधिकारी संचालक महोदय के समक्ष अपील आवदेन दिया गया अपील आवदेन पर ही कार्यालय द्वारा गलत प्रस्तुतिकरण में शिकायत करता मनीष जॉय को ही निलंबित कर कार्यवाही का आदेश दिया गया जिसमें संचालक द्वारा पुनः जांच टीम बनाया गया था जिसमें डॉक्टर तुर्रे डॉक्टर कन्नौजे को टीम में रखा गया है जिसके ऊपर भी मनीष जॉय ने शंका जाहिर किया कि तुर्रे सर जो डॉक्टर प्रभाकर के साथ काम किए हैं उनका पक्ष ले सकते है शंका जाहिर किया है। टीम ने जांच नहीं किया लेकिन डॉक्टर महेश्वर संयुक्त संचालक ने कही न कही दबाव मे बिना जांच 4 माह बाद निलंबित कर दिया जिससे व्यथित मानसिक प्रताड़ित मनीष जॉय बहाली की मांग कर रहे हैं
बहरहाल पूरे मामले में निष्पक्ष जांच की दरकार है। ताकि सत्य निखरकर सामने आए और वास्तविक दोषियों को सजा मिले।

Manoj Mishra

Editor in Chief

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