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Gustakhi Maaf: नकली पनीर की फैक्ट्री क्यों?

-दीपक रंजन दास
दुर्ग जिले के पाटन ब्लाक में एक गांव है देमार. यहां पनीर एवं अन्य मिल्क-प्रॉडक्ट की फैक्ट्री है। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने गत दिवस यहां छापा मारा। छापे में दूध-पाउडर के साथ-साथ पाम तेल का पीपा, कॉस्टिक सोडा, यूरिया, एसेटिक एसिड और कुछ अन्य केमिकल मिले। विभाग ने लगभग 19 घंटे तक फैक्ट्री की पड़ताल की और इन वस्तुओं के उपयोग के बारे में विस्तार से जानकारी ली। इसके अलावा अंडा के एक मिल्क पार्लर और भिलाई के एक डेयरी पर भी छापेमारी की गई। यहां से नमूने लिये गये हैं। अच्छा है कि यह छापा होली के बाद मारा गया। अब काफी दिनों तक वैसे भी इनके धंधों को कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। गर्मियां शुरू हो गई हैं और गरिष्ठ भोजन से लोग वैसे ही तौबा करने वाले हैं। जिन्हें दिन भर धूप में घूमना होता है या कायिक श्रम करना होता है, वो वैसे ही गर्मियों में मठा और बासी का उपयोग करने लगते हैं। दरअसल, दुनिया भर में तेजी से लोग शाकाहार की ओर बढ़ रहे हैं। 21वीं सदी में शाकाहारी होने की परिभाषा भी बदल गई है। शुद्ध शाकाहारियों को अब ‘वेजीÓ कहा जाता है। ये वो लोग होते हैं जो जानवरों से प्राप्त होने वाला कुछ भी ग्रहण नहीं करते। वेजी दूध, दही, छाछ, पनीर, मलाई, मक्खन तक से परहेज करते हैं। पर भारतीय शाकाहारी वेजी नहीं हैं। यहां शाकाहार का मतलब सात्विक भोजन से है। दूध, दही, मक्खन, मिठाईयां और पनीर सात्विक भोजन में शामिल हैं। इनकी जरूरतें पूरा करने के लिए भारत पूरी तरह से आत्मनिर्भर है। श्वेत क्रांति के बाद देश में दूध-दही की कोई किल्लत नहीं है। पर त्यौहारों में यह संतुलन गड़बड़ा जाता है। मिठाई की डिमांड में एकाएक 2-3 सौ गुना वृद्धि हो जाती है। सात्विक भोजन करने वाले भी कुछ अच्छा खाने के लिए पनीर की मांग करने लगते हैं। अब गाय को इंजेक्शन लगाओ या पानी पिलाओ, इस बढ़ी हुई मांग की पूर्ति नहीं की जा सकती। इस डिमांड को पूरा करने का एक ही तरीका है – सिंथेटिक मिल्क प्रॉडक्ट। इन्हें आप नकली कहो या वैज्ञानिक समाधान यह आपकी मर्जी। सालों पहले एक युवा उद्यमी से उसके दफ्तर में मुलाकात हुई थी। टेबल पर वह तरह-तरह की शीशियां लेकर कुछ प्रयोग कर रहा था। शीशे की एक नली से वह कभी इस शीशी से एक बूंद लेता तो कभी उस शीशी से। इसे वह अपनी हथेली की पीठ पर रगड़ता और फिर सूंघने लगता। जब मैंने इसका मतलब पूछा तो उसने मेरी हथेली की पीठ पर भी थोड़ा सा रसायन लगा दिया। जब मैंने उसे सूंघा तो वह शुद्ध देसी घी था। पूछने पर उसने बताया कि यह सीजनल बिजनेस है। जब-जब कुछ उत्पादों की डिमांड बेतहाशा बढ़ती है तो सप्लाई बढ़ाने के लिए विज्ञान की शरण में जाना पड़ता है। आप डिमांड कम कर दो, सप्लाई खुद-ब-खद बंद हो जाएगी। यही चमत्कार है।

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