समय-समय पर इसे अपनी पसंद के अनुसार कलर भी करवा सकते हैं. यह साड़ियां रिपेयर होती हैं और जब जी चाहे इसे आप 15-20 फीसदी की कटौती के साथ वापस भी कर सकते हैं. कोसा को सिल्क के सबसे शुद्ध प्रकारों में गिना जाता है. लेकिन, हाथों से तैयार होने वाली इस साड़ी को खरीदना आसान नहीं है.दरअसल, यह साड़ी छत्तीसगढ़ के चांपा जिले में बुनकरों द्वारा हथकरघे से तैयार की जाती है, फिर रंगाई कढ़ाई होती है. छत्तीसगढ़ के बुनकर मध्य प्रदेश के सागर की सेंट्रल यूनिवर्सिटी में आयोजित गौर उत्सव मेले में पहुंचे थे. इनके लिए उन्हें स्पेशल आमंत्रण दिया गया था.छत्तीसगढ़ से आई संध्या सिंह ने बताया, इस साड़ी को हथकरघे पर तैयार किया जाता है. लेकिन, इसके पहले एक कीड़ा होता है जिसे पालते हैं, उसके मुंह से लार्वा के रूप में जो लार निकलती है, उसे एक महीन धागा तैयार किया जाता है. इस धागे को हथकरघे पर लेकर बुनाई होती है.जमकर हुई खरीदारी को देखते हुए बुनकरों का कहना है कि सागर के लोगों का उत्साह देखकर अगली बार बड़े पैमाने पर माल लेकर आएंगे, जिसमें एक लाख तक की साड़ी शामिल होगी. वहीं, गौर उत्सव मेले में 40% डिस्काउंट पर यह साड़ियां बेची गईं, क्योंकि यह बुनकर से सीधे ग्राहक को दी जा रही थी. यहां 2000 से 10000 तक की साड़ियां लाई गई थी.इसके बाद नेचुरल कलर से रंगाई की जाती है. हाथों से ही कढ़ाई की जाती है. आज के जमाने में डिजाइनिंग कपड़े का महत्व है, इसलिए अब फैशन और डिजाइन पर भी ध्यान दिया जाने लगा है. एक साड़ी को बनाने में 10 से 15 दिन तक लग जाते हैं.विश्वविद्यालय महिला क्लब की अध्यक्ष मोनिका सिंह ने बताया, यह विश्व प्रसिद्ध साड़ियां सागर वालों की स्पेशल डिमांड पर बुलवाई गई हैं. कोसा सिल्क पूरी दुनिया में अपने खास टेक्स्चर के लिए जाना जाता है. यह बेहद मजबूत होता है. इसकी खासियत इसके रंग हैं. जिसे पलाश, लाख और गुलाब की पंखुड़ियों से बने रंगों से डाई किया जाता है.

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