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Gustakhi Maaf: बढ़ रही है अंगदान को लेकर जागरूकता

-दीपक रंजन दास
आज विश्व अंगदान दिवस है. मृत्यु को प्राप्त हो रहा एक मनुष्य चाहे तो जाते-जाते अनेक लोगों को नई जिन्दगी दे सकता है. पिछले कुछ वर्षों में मरणोपरांत या ब्रेन डेड होने की स्थिति में शरीर और अंगदान के मामलों में तेजी आई है. कुछ अंगों का दान जीते-जी किया जा सकता है. इनमें दो गुर्दों में से एक गुर्दा, जिगर के दो भागों में से एक तथा फेफड़ा या फेफड़े का हिस्सा, अग्न्याशय का हिस्सा या आंत का हिस्सा अपने जीते-जी दान किया जा सकता है. त्वचा दान भी एक ऐसी ही सेवा है. हृदय, यकृत, गुर्दे, आंत, फेफड़े और अग्न्याशय जैसे महत्वपूर्ण अंगों का दान केवल ‘मस्तिष्क मृत्यु’ की स्थिति में ही किया जा सकता है. हालांकि अन्य ऊतक जैसे कॉर्निया, हृदय वाल्व, त्वचा, हड्डियाँ आदि का दान केवल प्राकृतिक मृत्यु की स्थिति में ही किया जा सकता है. अंग प्राप्तकर्ताओं के लिए, प्रत्यारोपण का मतलब अक्सर जीवन का दूसरा मौका होता है. हृदय, अग्न्याशय, यकृत, गुर्दे और फेफड़े जैसे महत्वपूर्ण अंगों को उन लोगों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है जिनके अंग काम करना बंद कर रहे हैं. एक समय था जब लोग मानते थे कि यदि अपूर्ण शरीर का अंतिम संस्कार किया गया तो अगला जीवन मुश्किल में पड़ सकता है. पर समय के साथ इस तरह की धारणाएं कमजोर हुई हैं. अब जब लोगों को लगता है कि एक जीवन जिसे वो शर्तिया खोने जा रहे हैं, किसी और शरीर में आंशिक रूप से जीवित रह सकता है तो वो इस मौके को गंवाना नहीं चाहते. यह केवल अपने करीबी को आंशिक रूप से जीवित रखने का मामला नहीं है बल्कि जिसका जीवन बच रहा है उसकी और उसके परिवार की खुशी से खुश होने का भी है. यह देने की खुशी है जो छीनने या हासिल करने से कई गुना अधिक होती है. इस अंगदान दिवस पर एक ऐसी ही महामानव की खबर साझा कर रहे हैं. खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले की मुन्नी गोसाई को डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया. इसके बाद परिजन ने अंगदान का फैसला किया. उनकी एक किडनी एम्स, एक किडनी और लिवर रामकृष्ण अस्पताल के मरीज को दिया गया. आंखें आंबेडकर स्मृति चिकित्सालय को सौंपी गई हैं. फेफड़े पुणे की 45 वर्षीय महिला को भेजे गए. पति की तबियत को लेकर परेशान मुन्नी डिप्रेशन में थी. एक दिन उनकी तबियत बिगड़ गई पर गंडई में वेंटीलेटर की सुविधा नहीं थी. जब तक उन्हें रायपुर पहुंचाया गया वे हिम्मत हार चुकी थीं. मुन्नी कहा करती थी कि मरने के बाद मेरे अंग दान कर देना, ताकि और लोगों की जिंदगी बेहतर हो सके. उनकी इच्छा का सम्मान किया गया. छत्तीसगढ़ में अंगदान का यह 9वां मामला है. इससे पहले भी एक 13 वर्षीय किशोर तथा 44 वर्षीय एक महिला इन्हीं परिस्थितियों में अंगदान कर चुकी हैं. ऐसे मामले चिकित्सा सुविधा एवं विशेषज्ञता के विस्तार के लिए भी महत्वपूर्ण हैं.

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