-दीपक रंजन दास
25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित कर दिया गया है. उधर अनंत-राधिका की शादी के डीटेल्स आ रहे हैं. चारों तरफ चर्चा है तो केवल अनंत और राधिका की शादी की. लोगों ने शादी का एक-एक डीटेल नोट किया है और अपने-अपने ज्ञान का परिचय भी दे रहे हैं. कुछ लोग इसे जियो द्वारा बढ़ाए गए रिचार्ज पैक की कीमत से जोड़ कर मसखरी कर रहे हैं तो कोई इस शादी में हो रहे अनाप-शनाप खर्च पर छाती पीट रहे हैं. वैसे देखा जाए तो छाती पीटने की कोई खास वजह नहीं है. मिडिल क्लास, खासकर लोअर मिडिल क्लास लड़की की शादी में बर्बाद होने का पूरा सामान लेकर चलता है. औकात से ज्यादा खर्च करता है. कर्ज में डूब जाता है. अंबानी परिवार के साथ ऐसा कुछ नहीं होने वाला. फर्क यह भी है कि यह रकम वरपक्ष द्वारा खर्च की जा रही है. अंबानी परिवार जो भी कर रहा है अपनी हैसियत के अनुसार ही कर रहा है. आम आदमी के लिए यह शादी एक फिल्म देखने जैसी है. वैसे सीरियल देखने वालों को भी इसमें कुछ आनंद आएगा. अब आते हैं उससे कहीं ज्यादा जरूरी खबर पर. देश ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित कर दिया है. इसी तारीख को 1975 में देश में पहला औऱ अब तक का एकमात्र आपातकाल लगाया गया था. यह एक विलक्षण घटना थी. देश पर ऐसा कोई भी संकट नहीं आया था जिसके कारण संवैधानिक दृष्टि से आपातकाल लगाया जा सके. संविधान में स्पष्ट उल्लेख है कि कब और किन परिस्थितियों में आपातकाल लगाया जा सकता है. यदि युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत की सुरक्षा को खतरा हो तो राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है. 21 महीने तक चले इस आपातकाल के दौरान असंख्य लोगों को बिना कोई कारण बताए जेलों में ठूंस दिया गया. कुछ आंदोलनकारियों के लिए आपातकाल एक वरदान साबित हुआ. जेलखानों से वो तप कर निकले. 21 महीने बाद जनता ने इंदिरा सरकार को सबक भी सिखाया. इस चुनाव में इंदिरा गांधी नीत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आर) को 198 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा और वह 154 सीटों पर आ गई. पहली बार देश को गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री मिला. पर कांग्रेस विरोधी यह लहर ज्यादा दिन नहीं चल पाई. सातवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव तक देश आपातकाल के दर्द को भुलाकर आगे बढ़ चुका था. कांग्रेस एवं सहयोगी दलों ने जोरदार वापसी की. जनवरी 1980 में इंदिरा दोबारा देश की प्रधानमंत्री बन गईं. यही जीवन की रीत है. ऐसा शायद ही कोई मनुष्य या परिवार होगा जिसके जीवन में कभी कष्ट नहीं आया. पर वह उन्हें भूलकर आगे बढ़ता है और वर्तमान को बेहतर बनाने की कोशिश करता है. इसलिए संविधान हत्या दिवस का औचित्य समझना जरा मुश्किल है. आखिर क्यों कुछ लोग अपनी सफलता की बातें कम और दूसरों की विफलता की बातें ज्यादा करते हैं.
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