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लगातार कस रहा है नक्सलियों पर शिकंजा, साय सरकार की रणनीति से खात्मे की ओर नक्सली, आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति भी कारगर

रायपुर (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने के बाद नक्सलियों के खात्मे की ठोस रणनीति के कारगर नतीजे सामने आए हैं। नक्सल प्रभावित राज्यों के साथ मिलकर की जा रही चहुंओर घेराबंदी के चलते नक्सलियों को भागने या बच निकलने का अवसर नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते या तो नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं या फिर मारे जा रहे हैं। राज्य से नक्सलवाद की जड़ें लगातार कार्रवाई से कमजोर हो चुकी है। करीब 6 महीनों में ही डेढ़ सौ के करीब नक्सलियों को मार गिराया गया है। बीहड़ों में स्वयं को मजबूत करने के लिए माओवादी आमतौर पर बरसात के मौसम का सहारा लेते रहे हैं, क्योंकि बरसात में नदी-नाले उफान पर होने की वजह से फोर्स की गश्त बंद हो जाती थी। लेकिन आपरेशन मानसून के जरिए अब सुरक्षा बल व पुलिस के जवान लगातार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भीतर तक पहुंच रहे हैं।

उच्चस्तरीय सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश सरकार की आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति के सकारात्मक परिणाम आए हैं। इसके चलते बड़ी संख्या में नक्सली लगभग रोजाना समर्पण कर रहे हैं। उनके पास समर्पण के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं है, क्योंकि ऐसा न करने की स्थिति में मृत्यु का भय सदैव बना रहता है। मुख्यधारा में शामिल होने वाले समर्पित नक्सली भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि सुरक्षा बल व पुलिस जवानों की कार्रवाइयों से न केवल नक्सलियों बल्कि उनके समर्थकों में भी दहशत है। जंगलों में नक्सलियों को सहयोग करना ग्रामीणों की बड़ी मजबूरी रही है, लेकिन अब फोर्स के पहुंचने और लगातार माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई से ग्रामीणों का हौसला भी बुलंद हुआ है। वे अब उन मजबूरियों से बाहर निकलने लगे हैं, जो नक्सलियों की वजह से जन्म लेती रही है। छत्तीसगढ़ की साय सरकार नक्सल प्रभावित इलाकों में लगातार विकास के काम करवा रही है। इन क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है, स्कूल खोले जा रहे हैं। मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की भरपूर कोशिशें की जा रही है। इन सबने ग्रामीणों को प्रभावित किया है।

अबूझमाड़ जैसे इलाकों में जवानों की पहुंच आसान होने का भी अच्छा परिणाम सामने आया है। हाल ही में 72 घंटों के अभियान में सुरक्षा बल को बड़ी कामयाबी मिली। यहां के कोड़तामेटा क्षेत्र के घमंडी व हिकुलनार के जंगलों में नक्सलियों के हथियार बनाने के अस्थाई डेरे को ध्वस्त किया गया। इस डेरे में नक्सलियों के शीर्ष स्तर के केंद्रीय समिति के नेता सोनू उर्फ भूपति, कोसा व माड़ डिविजन की प्रभारी दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी सदस्य माड़ डिवीजन की सचिव रनिता उर्फ जयमति सहित 70 से 80 नक्सली उपस्थित थे, पर सुरक्षा बल के आने की भनक लगने के बाद वे वहां से भाग खड़े हुए। पीछे रह गई टीम के साथ सुरक्षा बल की मुठभेड़ हुई। पुलिस के अनुसार, नक्सल डेरे से मिले लेथ मशीन, बीजीएल (बैरल ग्रेनेड लांचर) के खाली खोखे, होंडा कंपनी का जनरेटर, स्प्रिंग, खाली पाइप सेल व अन्य मशीनों से इस बात की पुष्टि हुई है कि इस डेरे का उपयोग नक्सली देशी हथियार बनाने के लिए करते थे। मुठभेड़ में सुरक्षा बल ने पांच नक्सलियों को मार गिराया, जिनकी पहचान केंद्रीय समिति सदस्य के सुरक्षा सदस्य के रुप में हुई है। मारे गए सभी नक्सली पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी कंपनी नंबर एक के सदस्य थे। तीन घायल नक्सली को भी सुरक्षा बल ने घटनास्थल से पकड़ा। घटनास्थल के अलग-अलग स्थानों से एक 303 रायफल, दो 315 बोर रायफल, दो मजल लोडिंग रायफल, एक बीजीएल लांचर, छह बीजीएल सेल व भारी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ सहित अन्य नक्सली दैनिक उपयोगी सामान मिले।

बैकफुट पर माओवादी
नक्सलवाद के खिलाफ सख्त और बेहतर रणनीति के चलते माओवादी बैकफुट पर हैं। वर्ष 2024 में अब तक बस्तर संभाग के अंतर्गत हुई विभिन्न मुठभेड़ में कुल 136 नक्सलियों के शव मिले हैं। इसमें सर्वाधिक जिला बीजापुर- 51, कांकेर-34 व नारायणपुर- 31 नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराया गया है। इससे सुरक्षा बलों के हौसले बुलंद हैं। एक के बाद एक हो रही मुठभेड़ में नक्सलियों को मुंह की खानी पड़ रही है। इससे नक्सलियों में भय का माहौल है। सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, नक्सलवाद के खिलाफ राज्य सरकार ने जिस तरह से मोर्चा खोला है, उसने नक्सलियों को हथियार छोडऩे को लगातार विवश किया है। उल्लेखनीय है कि नक्सलवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई में सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि वह खून खराबा नहीं चाहती है। उपमुख्यमंत्री व गृहमंत्री विजय शर्मा ने ईमेल व गूगल फार्म जारी कर नक्सलियों से आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति के लिए सुझाव मांगा था। हालांकि इसका नक्सलियों पर ज्यादा असर नहीं हुआ।

शाह के रोडमैप ने दिखाई राह
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सलियों के सफाए के लिए 3 साल का वक्त निर्धारित किया था। इसके लिए एक रोडमैप पर तैयार किया गया। प्रदेश की साय सरकार इसी रोडमैप पर आगे बढ़ रही है। केंद्रीय गृह मंत्री शाह का रोडमैप है कि नक्सलियों के आर्थिक स्रोतों की पूरी तरह नाकेबंदी कर उन्हें मिलने वाले फंड को रोका जाए। इसका असर भी शुरू हो गया है। साथ ही नक्सलियों को मिलने वाले हथियारों की आवाजाही पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। इतना ही नहीं, नक्सलियों को उनकी ही मांद में घेरने की रणनीति में भी सुरक्षाबल को लगातार सफलता मिल रही है। जनवरी 2024 में शाह ने छत्तीसगढ़ में ही बैठक लेकर नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई को अधिक तेज करने की रणनीति बनाई थी। इसी का असर है कि फोर्स की हालिया कार्रवाई में हथियारों की देशी फैक्ट्री का पता चला। संभवत: बाहर से हथियारों की आवाजाही नहीं होने से नक्सलियों को स्थानीय स्तर पर ही हथियार बनाने की नौबत आई। हालांकि इस पर भी अंकुश लगा है।

जवानों के शौर्य से टूटे माओवादी
पूर्ववर्ती सरकार की तुलना में वर्तमान सरकार की नीतियों ने नक्सलियों की जड़ें खोखली कर दी है। जवानों को नक्सल-अभियान के दौरान खुली छूट दी गई है। यही वजह है कि बड़ी संख्या में माओवादियों का खात्मा हो रहा है। इससे पहले उन पर कई तरह की बंदिशें लगाई गई थी। जिसके चलते अभियान अपने मंसूबों को पूरा करने में कामयाब नहीं रहा और नक्सली लगातार वारदातों को अंजाम देते रहे। लेकिन अब स्थितियां पूरी तरह से बदल चुकी है। बस्तर आइजीपी सुंदरराज पी. के मुताबिक, सुरक्षा बलों ने मानसून में भी क्षेत्र के भौगोलिक विकट परिस्थितियों से निपटते हुए अदम्य साहस का परिचय देते हुए नक्सलियों से लड़ते हुए नक्सल विरोधी माड़ बचाओ अभियान को सफल बनाया है। यह नक्सलियों के विरूद्ध कड़ा प्रहार है। लगभग 40 वर्ष से माड़ नक्सलवाद के भय व हिंसा ग्रस्त रहा है लेकिन अब यहां के मूलवासी व ग्रामीण हिंसा, भय एवं नक्सलवाद से मुक्त माड़ की कल्पना कर रहे हैं। उन्होंने नक्सलियों से अपील की कि शासन की आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति को अपनाकर समाज के मुख्य धारा से जुड़े।

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