-दीपक रंजन दास
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर छत्तीसगढ़ में भी एक पेड़ मां के नाम अभियान शुरू हो गया। छत्तीसगढ़ का क्षेत्रफल एक लाख 35 हजार 191 वर्ग किलोमीटर है। यह देश के कुल भू-भाग का सिर्फ 4।1 प्रतिशत है। इसमें से 59 हजार 772 किलोमीटर क्षेत्र पर वन हैं। पर यह तेजी से घट रहा है। आप कितने भी पेड़ लगा लो, जंगलों को दोबारा खड़ा करना किसी के बस में नहीं लगता। पिछले कई वर्षों से वन विभाग और तमाम शासकीय नर्सरियां स्कूल-कालेजों और स्वेच्छा सेवी संगठनों पर वृक्षारोपण के लिए दबाव बना रही हैं। अव्वल तो पौधों के लेवाल नहीं मिलते। मिल भी गए तो अधिकांश पौधे जहां-तहां गाड़ दिये जाते हैं जहां कुछ समय बाद उनका मरना तय रहता है। अब तो संस्थानों को पर्यावरण दिवस के नाम से ही दहशत होने लगी है। ट्विन सिटी की ही बात करें तो यहां खाली जगह होने और नहीं होने का फर्क सबसे ज्यादा उभर कर सामने आता है। भिलाई इस्पात संयंत्र के टाउनशिप में जितने क्वार्टर, बाजार या काम्पलेक्स बने हैं उससे कहीं ज्यादा जगह खाली छोड़ी गई है। यहां सघन वनीकरण किया गया है। यही कारण है कि जब पटरी पार के लोग गर्मियों में टाउनशिप आते हैं तो तापमान में 2 से 3 डिग्री का अंतर साफ महसूस होता है। इसके विपरीत पटरी पार के निजी क्षेत्र में मकानों से सटकर मकान बने हैं। अब तो मकान के आगे पीछे जमीन छोडऩे की जरूरत भी नहीं रही। लोगों के मकान सड़कों तक बने हुए हैं। यहां तक कि गाडिय़ां चढ़ाने के लिए बने रैम्प भी सड़कों पर अतिक्रमण कर बनाए गए हैं। हजार-बारह सौ रुपए फुट की जमीन को कोई छोड़े भी तो कैसे। ऊपर से निगम ने खाली स्थानों पर पार्क की योजना शुरू की। इनमें से केवल 20 प्रतिशत पार्कों का ही उपयोग हो रहा है। शेष जगहों पर झाड़-झंखाड़ उगे हुए हैं। यदि इन स्थानों को वनीकरण के लिए चिन्हित कर दिया जाए तो पेड़ किसी के भी नाम से लगे वह कम से कम सुरक्षित तो रहेगा। पौधे लगाने के लिए इससे ज्यादा सुरक्षित जगह हो ही नहीं सकती। भिलाई टाउनशिप में जगह-जगह ऐसे छोटे-छोटे जंगलों को देखा जा सकता है। सरकार को खनिज नीति में भी संशोधन करना होगा। विकास के लिए अंधाधुंध खदानें खोलना और उसे हाथों में सौंप देना, उसी शाख को काटने जैसा है जिसपर आप बैठे हैं। कोयले के लिए मध्य भारत का फेफड़ा कहलाने वाले हसदेव अरण्य क्षेत्र के सैकड़ों हेक्टेयर जंगलों की कटाई हो चुकी है। यह एक जैव विविधता वाला क्षेत्र है जहां हाथी समेत 25 अन्य वन्य प्राणियों का आवास प्रभावित हुआ है। जंगलों की कटाई के बाद से आसपास के गांव वाले दहशत में हैं। पिछले 13 सालों से वो जंगल बचाने की कोशिश कर रहे हैं पर कोई सुनने वाला नहीं। इससे सरकार की प्राथमिकता समझ में आ जाती है।
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