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Gustakhi Maaf: इन थोथे संकल्पों से क्या होगा?

-दीपक रंजन दास
संकल्प लेना इन दिनों एक फैशन की तरह हो गया है. कोई स्वच्छता का संकल्प ले रहा है, कोई पालीथीन के खिलाफ शपथ ले रहा है तो कोई गौरैया को बचाने का संकल्प ले रहा है. पर इन संकल्पों का कोई नतीजा कहीं दिखाई नहीं दे रहा. लोग सामूहिक रूप से संकल्प लेते हैं. कभी निर्देश के कारण संकल्प लेना पड़ता है तो कहीं दिवस विशेष पर संकल्प लेने की रस्म अदायगी की जाती है. इन संकल्पों को पूरा करने की कोई कोशिश होती दिखाई नहीं देती. समस्या जितनी दिखाई देती है, उससे कहीं बड़ी है. हाल ही में विश्व गौरैया दिवस मनाया गया. शहर में कुछ बच्चों ने कृत्रिम घोंसले बनाकर गौरैया को बचाने का संदेश दिया. साथ ही उन्होंने गौरैया को बचाने का संकल्प भी लिया. गौरैया तो क्या अब अधिकांश शहरों में कौए भी कहीं दिखाई नहीं देते. शेष पक्षियों को तो हम कम ही पहचानते हैं. इसलिए यह कहना मुश्किल है कि और कौन-कौन सी चिड़िया गायब हो गई है या गायब होने के कगार पर है. दरअसल, सभी पशु-पक्षियों का जीवन पर्यावरण से जुड़ा है. पर्यावरण संरक्षण के लिए जिस सोच की आवश्यकता है, वह विलुप्त हो चुकी है. एक-एक इंच जमीन की कीमत लग रही है. पेड़ पौधों का लोप हो रहा है. इसकी वजह से पक्षियों के लिए भोजन तलाशना और मौसम का तापमान बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा है. थोड़ा दाना और थोड़ा पानी रखकर इनके जीवन रक्षा के छोटे-मोटे प्रयास किये जा रहे हैं जिसकी सराहना तो की जा सकती है पर इसका कोई ज्यादा फायदा नहीं होने वाला. एक और संकल्प है प्लास्टिक, विशेष कर सिंगल-यूज प्लास्टिक से पर्यावरण को बचाने का. प्रति वर्ष स्कूल-कालेजों में इसके लिए संकल्प लिया जाता है. पहले यह अभियान प्लास्टिक की सभी वस्तुओं के खिलाफ चलाया गया. कुछ स्कूलों ने प्लास्टिक के टिफिन डब्बे बैन कर दिये. पर पता नहीं किसके दबाव में प्लास्टिक का नाम बदल कर सिंगल यूज प्लास्टिक कर दिया गया. असल बात तो यह थी कि अब बाजार जाने के लिए कोई घर से नहीं निकलता. वह तो लौटते हुए सौदा खरीद लाता है. तब उसके पास थैला नहीं होता और बार-बार थैला खरीदना संभव भी नहीं है. लिहाजा वह सिंगल यूज प्लास्टिक की झिल्ली थैली में सामान खरीदता है. राशन दुकानों में प्रत्येक सामान प्लास्टिक की झिल्ली में ही पैक करके दिया जाता है क्योंकि ये न केवल मजबूत होते हैं बल्कि इन्हें बांधने के लिए अलग से सुतली की जरूरत भी नहीं होती. घर पहुंचने के बाद ये सामान डब्बों में खाली कर लिया जाता है और प्लास्टिक की ये थैलियां सिंगल यूज बन कर रह जाती हैं. लोग इसमें भर कर कचरा फेंकते हैं जिसे गाय और अन्य मवेशी निगल जाते हैं. सबको सबकुछ पता है पर जमाना जिस तेजी से बदला है, उसी तेजी से लोगों की आदतें भी बदली हैं. संकल्प-मात्र से क्या होगा?

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