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बिहार में नीतिश सरकार को झटका, आरक्षण बढ़ाने के फैसले को हाईकोर्ट ने रद्द किया, बताया असंवैधानिक

पटना। बिहार में नीतिश सरकार को हाईकोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। सरकार के आरक्षण बढ़ाने वाले फैसले को पटना हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। हाई कोर्ट ने आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने के राज्य सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द किया है। बिहार की महागठबंधन सरकार ने जातीय जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाकर राज्य में आरक्षण का प्रतिशत 65 तक पहुंचा दिया था।

बता दें 21 नवंबर 2023 को बिहार सरकार ने इसको लेकर गजट प्रकाशित कर दिया था। इसके बाद से शिक्षण संस्थानों और नौकरी में अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अतिपिछड़ा को 65 फीसदी आरक्षण का लाभ मिल रहा था। अनुसूचित जाति को दिए गए 16 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया गया था। अनुसूचित जनजाति को को दिए गए एक प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर अब दो प्रतिशत किया गया था। पिछड़ा वर्ग को 12 प्रतिशत को बढ़ाकर 18 प्रतिशत और अति पिछड़ा को दिए गए 18 फीसदी आरक्षण को बढ़ाकर 25 फीसदी किया गया था।

65 प्रतिशत आरक्षण कानून के खिलाफ गौरव कुमार व अन्य लोगों ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी। जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान उचित नहीं है। 2023 का संशोधित अधिनियम बिहार सरकार ने पारित किया है, वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसमें सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार का उल्लंघन करता है। याचिका पर चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ ने लंबी सुनवाई की। इसके बाद 11 मार्च को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुरुवार को कोर्ट ने 65 फीसदी आरक्षण वाले राज्य सरकार के निर्णय को रद्द करने का फैसला सुनाया।  इसके साथ ही अब 50 प्रतिशत आरक्षण वाली पुरानी व्यवस्था ही लागू हो जाएगी।

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