हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दिवाली मनाई जाती है और उसके ठीक 15 दिन बाद यानी कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ भोले नाथ की पूजा करने का विधान है। इसके साथ ही दिवाली की तरह घरों को दीपों से सजाया जाता है। ये पर्व बनारस में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। घाटों को दीपों से सजाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवता बनारस आकर गंगा स्नान करके दीपकों को जलाकर देव दिवाली मनाते हैं। इस साल 5 नवंबर को देव दिवाली का पर्व मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं देव दिवाली मनाने के पीछे पौराणिक कथा…
देव दिवाली की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव दिवाली का पर्व अत्यंत पावन और महत्त्वपूर्ण माना गया है। कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक अत्याचारी राक्षस का वध किया था। जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया तो तारकासुर का वध किया तो त्रिपुरासुर के तीन पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने अपने पिता के वध का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और अमरता का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने अमर होने का वरदान देने से मना कर दिया, लेकिन उन्होंने ऐसी इच्छा व्यक्त की कि उनका अंत तब ही हो जब अभिजित नक्षत्र में तीनों स्वर्णमयी पुरियाँं एक सीध में आ जाएं और कोई उन्हें एक ही बाण से समाप्त करे। इस वरदान के फलस्वरूप वे लगभग अजेय हो गए और तीनों लोकों पर अपना अत्याचार आरम्भ कर दिया।धीरे-धीरे त्रिपुरासुर यानी तारकाक्ष और उसके अन्य भाईयों के अत्याचार स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और पाताललोक तक फैल गए। ऋषि-मुनि और देवता अत्यंत कष्ट में आ गए तथा सभी ने भगवान शिव की शरण ली। जगत के कल्याण हेतु भगवान शंकर ने दुष्टों के विनाश का संकल्प लिया।





