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Gustakhi Maaf: अकूत कमाई और क्वालिफिकेशन में क्राइम

-दीपक रंजन दास
75 साल में यह हालत हो गई है भारतीय लोकतंत्र की. यह एक ऐसा पेशा है जिसमें अकूत कमाई है. इसके लिए केवल उम्र क्राइटेरिया है. वोट मैनेज कर लिया तो जघन्यतम अपराध के आरोप लेकर आप मंत्री बन सकते हैं. तुलसीदास ने रामायण में कहा भी है – “समरथ को नहीं दोष गोसाईं, रवि पावक सुरसरि की नाईं.’ इस दोहे का अर्थ है कि योग्य और शक्तिशाली व्यक्ति पर कोई दोष नहीं लगता, ठीक वैसे ही जैसे सूर्य, अग्नि और गंगा नदी. अर्थात जो व्यक्ति सामर्थ्यवान होता है, चाहे वह कैसा भी कार्य करे, उस पर किसी भी प्रकार की उंगली नहीं उठाई जा सकती. फर्क केवल इतना है कि यहां दोष छिपाने के लिए भी लोग सामर्थ्यवान बनते हैं. देशभर के 302 मंत्रियों (करीब 47%) ने आपराधिक केस की बात खुद स्वीकारी है. इनमें 174 मंत्री ऐसे हैं, जिन पर हत्या, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आरोप हैं. केंद्र सरकार के 72 मंत्रियों में से 29 (40%) ऐसे हैं जिन्होंने आपराधिक केस की बात मानी है. चुनाव सुधार संस्था ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने 27 राज्यों, 3 केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र सरकार के कुल 643 मंत्रियों के हलफनामों के विश्लेषण के बाद यह जानकारी दी है. यह हाल सभी पार्टियों का है. भाजपा के 336 मंत्रियों में से 136 पर आपराधिक केस हैं, जिनमें से 88 पर गंभीर आरोप हैं. कांग्रेस के 61 मंत्रियों में से 45 पर केस हैं, 18 पर गंभीर आरोप हैं. डीएमके के 31 में से 27, टीएमसी के 40 में से 13 और टीडीपी के 23 में से 22 के खिलाफ मामले हैं. अनुपात के हिसाब से देखें तो सबसे अच्छी स्थिति टीएमसी की है जबकि सबसे ज्यादा बदनाम वही है. आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, ओडिशा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और पुडुचेरी में 60 प्रतिशत से ज्यादा मंत्री आपराधिक मामलों में आरोपी हैं. देश की कुल 512 महिला सांसदों और विधायकों में से 28% यानी 143 पर क्रिमिनल केस दर्ज हैं. इनमें से 78 पर हत्या, किडनैपिंग जैसे गंभीर आरोप हैं. यह स्थिति तब है जब पुलिस नेताओं के मामले में हाथ डालने से कतराती है. यदि सभी मामले दर्ज हो जाएं तो आंकड़े और भी भयावह हो सकते हैं. तो क्या जनता भी यही चाहती है? आखिर इन्हें चुनकर विधानसभा औऱ लोकसभा में भेजने की जिम्मेदारी तो नागरिकों की ही है. क्या प्राथमिकताएं बदल रही हैं? दमदार नेता जब मंत्री हो जाते हैं तो करेले पर नीम चढ़े की कहावत अपने आप चरितार्थ हो जाती है. कोई आश्चर्य नहीं कि देश की सर्वोच्च अदालत की राय भी अब सरकार को पसंद नहीं आती. उनकी तरफ से वकील ऐसे-ऐसे तर्क देते हैं कि न्याय की अवधारणा ही घायल हो जाती है. दरअसल, केंद्र सरकार ने हाल ही में संसद में 130वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है. उम्मीद करनी चाहिए कि इसके इरादे नेक हों.

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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