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Gustakhi Maaf: 100 मुसीबतों का एक हल है “बाइक टैक्सी”

_दीपक रंजन दास
बेंगलुरू में बाइक टैक्सी के खिलाफ बवाल हो गया है. दरअसल, राज्य सरकार ने लाइसेंस और नीति न होने का हवाला देकर इन सेवाओं को अवैध माना था. साल 2023 में मामला अदालत तक पहुंचा. उबर इंडिया सिस्टम्स, ओला और रैपिडो जैसी कंपनियों ने इस आदेश के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में अपील दायर की थी. हाईकोर्ट ने शनिवार को कहा कि उसने इसकी कोई अनुमति नहीं दी है. सरकार चाहे तो ऑपरेटर कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. पर साथ ही यह हिदायत भी दी है कि राइडर्स या पैसेंजर्स को परेशान न किया जाए. शिकायत थी कि पुलिस राइडर्स की बाइक जब्त कर रही है. अब सरकार अंधी हो तो कोई क्या ही कर सकता है. अगर कोई लाइसेंस नीति नहीं बनी है तो यह सरकार की कमजोरी है. बाइक टैक्सी एक ऐसी व्यवस्था है जो बड़े शहरों की 100 समस्याओं का समाधान करती है. इसकी शुरुआत 2012 में ओला ने की थी. इसके बाद 2013 में मेरू कैब्स और उबर, 2015 में रैपिडो और 2022 में नम्मा यात्री इसमें शामिल हुआ. इन कंपनियों के ऐप पर यात्री बाइक टैक्सी या बाइक कैब बुक कर सकते हैं. यह एक दुपहिया टैक्सी सर्विस है जिसमें यात्री पिलियन बनकर सफर करता है. बड़े शहरों में ट्रैफिक और पार्किंग दोनों ही एक बड़ी समस्या बनकर उभरी हैं. क्रय शक्ति बढ़ने के कारण अब मिडिल क्लास परिवारों में भी चार पहिया वाहन हैं. इनकी वजह से सड़कें चौड़ी करनी पड़ रही हैं. मल्टीलेवल पार्किंग बनानी पड़ रही है. इसके बाद भी बेतरतीब पार्किंग ने लोगों की नाक में दम कर रखा है. चार पहिया वाहनों को छोड़ भी दें तो दुपहिया वाहनों के लिए भी पार्किंग एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है. ऐसे में बाइक टैक्सी एक ऐसा सॉल्यूशन लेकर आई है जिसमें आप किफायती दरों पर सफर कर सकते हैं और पार्किंग की समस्या से भी निजात पा सकते हैं. स्टूडेंट्स के अलावा बड़ी संख्या में अस्थायी रूप से शहर आने वाले आगंतुक भी इन सेवाओं का लाभ ले रहे हैं. इससे बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार भी मिला है. राइडर्स स्थानीय होते हैं जिन्हें सड़कों और लोकेशन्स की अच्छी जानकारी होती है. वे शार्टकट से भी सवारियों को समय पर उनके गंतव्य तक पहुंचा देते हैं. कहां तो सरकारें इस नायाब स्टार्टअप को प्रोत्साहित करती, वह अपनी नाकामी को छुपाने के लिए बाइक टैक्सी कंपनियों पर कार्रवाई कर रही है. उनपर जुर्माना ठोंक रही है. राइडर्स को पकड़ रही है, उनकी गाड़ियां जब्त कर रही है. सरकार बताए कि क्या उसके पास सिटी कम्यूटर्स और पार्किंग समस्या का कोई स्थायी या दीर्घजीवी हल है? ऐसा लगता है कि सरकार वाहन निर्माता और विक्रेता कंपनियों के जबरदस्त दबाव में है. बाइक टैक्सियां पढ़ने या नौकरी करने के लिए बड़े शहरों में जाने वाले युवाओं को स्वयं का वाहन खरीदने के झंझट से मुक्त जो कर देती हैं.

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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