-दीपक रंजन दास
ऑपरेशन सिंदूर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में दो टूक बात कह दी है। यह कि आतंक को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। भारत हर उस जगह घुसकर प्रहार करेगा जहां से आतंक की जड़ें निकलती हैं। भारत न्यूक्लियर वार की गीदड़-भभकी से नहीं डरने वाला। उसने आतंक और पाकिस्तानी सेना का गठजोड़ दुनिया के सामने रख दिया है। प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान के साथ केवल दो विषयों पर बात होगी – पहला आतंकवाद का सफाया और दूसरा पीओके का स्थायी समाधान। उन्होंने दोहराया कि ऑपरेशन सिंदूर अभी समाप्त नहीं हुआ है। इसे केवल स्थगित किया गया है। आतंक के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी। युद्ध विराम की स्थिति इस पर निर्भर करेगी कि पाकिस्तान का रवैया इसके बाद क्या रहेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने बेशक मर्यादित और शालीन भाषा में अपनी बात रखी है पर इसका आशय एकदम स्पष्ट है। उसने पाकिस्तान और उसके आकाओं से साफ-साफ कह दिया है कि शांति के लिए युद्ध जरूरी हो तो भारत पीछे नहीं हटेगा। विकसित भारत के लिए शांति चाहिए पर इसका मतलब यह नहीं है कि पड़ोसी देश की बर्बर और बेजा हरकतों को नजरअंदाज किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने वह भी कहा जो हम पहले ही लिख चुके थे कि इस युद्ध ने भारत को अपने स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम और प्रहार क्षमता को परखने का मौका दिया। अब यह साबित हो चुका है कि उसके स्वदेशी आयुध और प्रतिरक्षा प्रणाली किसी भी विकसित देश के मुकाबले कमतर नहीं है। यहीं से शुरू हो जाता है भारत की वैश्विक पहचान का नया सफर। भारत एयर डिफेंस के मामले में एक मजबूत निर्माता देश बनकर उभरने की संभावना रखता है। रूसी एस-400 के साथ ही भारत ने इनका सफल परीक्षण किया है। भारत की यह सफलता खुद अमेरिका और चीन के लिए चिंताजनक हो सकती है। भारत और रूस के बीच के दृढ़ संबंध चीन के लिए हमेशा परेशानी का सबब रहे हैं। पाकिस्तान की तरफ उसके हाथ बढ़ाने के पीछे भी यही सबसे बड़ी वजह है। पर पाकिस्तान खुद अमेरिका की ओर देखता है। वहां से उसे मोटी खैरात जो मिलती है। अगर बात विश्व बैंक की हो, संयुक्त राष्ट्र की हो तो अमेरिका ही वह आका हो सकता है जो उसकी मदद कर सके। ऑपरेशन सिन्दूर के बाद यह स्थिति भी स्पष्ट हो चुकी है। चीन कितना भी नाक-भौं सिकोड़े, कितनी भी नाराजगी दिखाए, ये स्थिति फिलहाल तो बदलती प्रतीत नहीं होती। सवाल यह उठता है कि अब आगे क्या? यह अवसर पहलगाम हमले पर उठे सवालों पर चर्चा का नहीं है। यह अवसर है पहलगाम हमले के बाद की स्थिति पर गौर करने का। अब भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों के राजनीतिक नेतृत्व पर इस बात का दबाव है कि वे अपनी कथनी-करनी के भेद को समाप्त करें। अन्यथा वे जनता का विश्वास खो देंगे।

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