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नए अपराजेय योद्धा की तलाश, रायपुर दक्षिण सीट पर बेअसर रहता है जातिगत समीकरण

रायपुर (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल के सांसद निर्वाचित होने के बाद खाली हुई रायपुर दक्षिण सीट पर वर्षांत तक उपचुनाव होने हैं। वैसे तो भाजपा से इस सीट के लिए कई लोग दावेदार हैं, लेकिन पार्टी को श्री अग्रवाल की ही तरह अपराजेय योद्धा की तलाश है, जो लम्बे समय तक इस सीट को अपने कब्जे में रख सके। रायपुर दक्षिण की सीट को हॉट सीट माना जाता है। यहां जातिगत समीकरण काम नहीं करता। इस सीट के लिए अगला प्रत्याशी चाहे जो हो, बृजमोहन के प्रभाव और क्षेत्र में उनकी पकड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसे में प्रत्याशी चयन के दौरान उनकी भूमिका भी अहम् हो जाती है। संसदीय चुनाव के दौरान पार्टी ने जब बृजमोहन अग्रवाल पर दांव लगाया था, तभी से टिकट के दावेदार सक्रिय हो गए थे, क्योंकि श्री अग्रवाल की जीत को तय माना जा रहा था। नतीजों के बाद दावेदारों की सक्रियता में और तेजी देखी गई। खासतौर पर कई पार्षदों ने लामबंदी भी शुरू कर दी थी।

माना जाता है कि आमतौर पर उपचुनाव के नतीजे सत्तारूढ़ दल के पक्ष में आते हैं। शायद यही वजह है कि बृजमोहन के इस्तीफा देने के बाद रिक्त हुई रायपुर दक्षिण सीट पर कई लोगों की निगाहें लगी हुई है। कई लोग को टिकट के जुगाड़ में दिल्ली दरबार का भी चक्कर लगा आए हैं। इस सीट से लगातार 8 बार चुनाव जीतने वाले बृजमोहन अग्रवाल सर्वमान्य नेता माने जाते हैं। क्षेत्र में उनकी स्वीकार्यता जगजाहिर है। यह भी एक कारण है कि यह सीट भाजपा का गढ़ बन चुकी है। दावेदारी करने वालों को इस वजह से भी अपनी जीत आसान नजर आ रही है। माना जा रहा है कि पार्टी इस सीट के नए और बेदाग चेहरे पर दांव लगा सकती है। हालांकि प्रत्याशी का फैसला दिल्ली में ही होगा। रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट की खास बात ये हैं कि यहां हर जाति-वर्ग और समुदाय के लोग रहते हैं। बावजूद इसके इस सीट पर बृजमोहन अग्रवाल को कभी पराजय का सामना नहीं करना पड़ा। यानी इस सीट पर जातिगत समीकरण काम नहीं आता है।

जानकार भी मानते हैं कि रायपुर की दक्षिण विधानसभा सीट पर जातिगत समीकरण का कोई असर नहीं पड़ता है, क्योंकि इस सीट पर बृजमोहन अग्रवाल लंबे समय से जीतते आ रहे हैं। जबकि उस विधानसभा क्षेत्र में अग्रवाल समाज के वोटों की संख्या ज्यादा नहीं है। यहां ब्राह्मण, मुस्लिम, सीख समेत अन्य समाज के लोग निवासरत हैं। ओबीसी वर्ग की बहुलता है। बावजूद इसके चुनाव में इस सीट पर यह समीकरण कोई मायने नहीं रखता। इस सीट पर लंबे समय से भाजपा का कब्जा रहा है। बृजमोहन अग्रवाल के अलावा किसी भी राजनीतिक दल, जाति, धर्म, समुदाय के नेता को यहां की जनता ने मौका नहीं दिया। इस सीट से कांग्रेस, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस सहित निर्दलीय किसी भी जाति धर्म समुदाय के नेता को कभी जीत नहीं मिली। यही वजह है कि इस सीट को लेकर चर्चा है कि यहां पर जातिगत समीकरण काम नहीं आता है, मतलब कि इस सीट पर जातिगत समीकरण पूरी तरह फेल है।

संघ वाले चेहरे को वरीयता
विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में भी पार्टी आलाकमान ने बहुधा संघ से जुड़े चेहरों को वरीयता दी थी। ऐसे में इस बात की संभावना बलवती होती है कि रायपुर दक्षिण के उपचुनाव में भी संघ से जुड़े किसी चेहरे को प्राथमिकता मिले। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल ऐसे चेहरे की तलाश की जा रही है। वहीं, टिकट की जुगाड़ में लगे कई लोग अपनी दावेदारी को पुख्ता बनाने में जुटे हैं। सिर्फ रायपुर दक्षिण ही नहीं, आसपास के क्षेत्रों के भी दावेदार सक्रिय हैं। अपने नेताओं के जरिए वे माहौल तैयार करने में भी जुटे हैं। दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि पार्टी फ्रेश चेहरे को सामने ला सकती है। यदि ऐसा होता है कि क्षेत्र में बृजमोहन अग्रवाल के साथ लम्बे समय से राजनीति करने वाले किसी एक चेहरे का भाग्य खुल सकता है।

निकाय चुनाव के साथ होगा उपचुनाव
साल के आखिर में नगरीय निकाय के चुनाव होने जा रहा है। ऐसे में विधानसभा का उपचुनाव उसी के साथ होने की पूरी संभावना है। दरअसल, सीट रिक्त होने के बाद उसे भरने के लिए 6 माह का वक्त होता है। कहा जा रहा है कि बृजमोहन अग्रवाल के सांसद निर्वाचित होने के साथ ही भाजपा ने रायपुर दक्षिण सीट पर चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी थी। प्रदेश में भाजपा की सत्ता है, ऐसे में पार्टी का मानना है कि इस सीट को निकालने में कोई कठिनाई नहीं आएगी। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बृजमोहन के मुकाबले यहां से एक संत को मैदान में उतारा था, जो बुरी तरह से पराजित हुए थे। कहा जा रहा है कि इस सीट के लिए कांग्रेस के पास कोई बड़ा और नामचीन चेहरा नहीं है। इसलिए उसके लिए मुश्किलें भी कम नहीं है।

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