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Gustakhi Maaf: नमस्ते सदावत्सले मातृभूमे

-दीपक रंजन दास
जिन्हें केक काटकर हैप्पी बर्थ-डे टू यू गाने में कभी हिचकिचाहट नहीं हुई उनके पेट में अब क्यों दर्द हो रहा है, कहना मुश्किल है. 50, 60, 70 या 80 के दशक में भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में ईसाई प्रार्थनाएं गाई जाती रही हैं. तब भी किसी को कोई आपत्ति नहीं थी. संस्कृत में प्रार्थनाएं दयानंद ऐंग्लोवैदिक स्कूलों सहित कुछ ही अन्य स्कूलों तक सीमित रहीं. संस्कृत में प्रार्थनाएं लोकप्रिय नहीं हो पाईं तो इसके पीछे के कारणों को सहज ही समझा जा सकता है. संस्कृत को एक विषय के रूप में छठवीं कक्षा से पढ़ाया जाता है. नई शिक्षा नीति या राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत अब कुछ राज्यों में इसे पहली से ही पढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं. उच्चारण की शुद्धता के प्रति आग्रह भी इसका एक कारण हो सकता है. संभवतः यही वजह रही कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा गाया जाने वाला गीत “नमस्ते सदावत्सले मातृभूमे” को स्कूली प्रार्थनाओं में कभी जगह नहीं मिली. जिस सहजता से ईसाई प्रार्थनाओं को स्वीकार किया गया यदि संस्कृत की प्रार्थनाओं के साथ भी ऐसा ही होता तो “नमस्ते सदावत्सले मातृभूमे” राष्ट्रीय सेवा योजना तथा भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के स्वयंसेवकों के बीच तो लोकप्रिय हो ही गया होता. इस गीत के शब्द यद्यपि कठिन हैं किन्तु इनका अर्थ इतना सुन्दर और भावपूर्ण है कि यह सहज ही भारतीय सेना का आदर्श गीत हो सकता था. यह चर्चा आज इसलिए की कर्नाटक में “नमस्ते सदावत्सले मातृभूमे” गाकर दो-दो कांग्रेसी अपनी ही पार्टी के कोप का शिकार हो गए हैं. कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने 21 अगस्त को कर्नाटक विधानसभा में इस गीत को गाया. इसके बाद तुमकुरु जिले के कुनिगल से विधायक एचडी रंगनाथ ने रविवार को पत्रकारों के साथ बातचीत के दौरान “नमस्ते सदावत्सले मातृभूमे” की पंक्तियां पढ़ीं. उन्होंने इसे बहुत अच्छा गीत बताया. उन्होंने कहा, हमारी पार्टी सेक्युलर है और हमें दूसरों से अच्छी बातें अपनानी चाहिए. पर दुर्भाग्य से इन नेताओं के भाजपा में जाने की अटकलें शुरू हो गईं. इस गीत की रचना नरहरि नारायण भिड़े ने 1939 में की थी. इसे उसी साल फरवरी माह में पुणे संघ शिक्षा प्रथम वर्ग में प्रस्तुत किया गया था. तभी से संघ की शाखाओं में इसे नियमित रूप से गाया जाता है. संस्कृत की इस रचना का हिन्दी भावार्थ बहुत सुन्दर है. इसमें कहा गया है – हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा नमस्कार करता हूँ. तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है. हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो. हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर! तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है. हमें शुभाशीर्वाद दे. ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष विश्व नतमस्तक हो जाये. ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये. पर वितंडेश्वरों को इससे क्या?

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Manoj Mishra

Editor in Chief

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