उज्जैन. आज के डिजिटल युग में लेखा-जोखा रखने के लिए जहा बड़े-बड़े कंप्यूटर मौजूद हैं, जिसमें दुनिया भर का डाटा सेव रखा जा सकता है. लेकिन, अगर हमें अपने पूर्वजों के बारे में जानना हो तो क्या करें? इस सवाल का जवाब महाकाल की नगरी उज्जैन में है. उज्जैन के सिद्धवट घाट पर पंडे-पुजारियों के पास आज भी सालों पुराने बही-खाते हैं. बड़ी संख्या में लोग यहा अपने पितरों का तर्पण करने पहुंचते हैं.मान्यता है कि क्षिप्रा नदी किनारे सिद्धवट घाट पर पूर्वजों का तर्पण करने से गयाजी के बराबर पुण्य मिलता है. लोग सिर्फ अपना और शहर का नाम बताकर अपनी पीढ़ियों का पता पंडितों से पाते हैं. फिर अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं. इस आधुनिक युग में भी बिना कंप्यूटर के 200 वर्ष पुरानी पोथी पर काम कर रहे पंडित चुटकियों में जजमान के परिवार का लेखा जोखा सामने रख देते हैं. यही नहीं, कुछ वर्षों पहले इनकी पोथियों से कोर्ट में लंबित पारिवारिक और संपत्ति विवाद का निपटारा भी हुआ है
प्राचीन वटवृक्ष की मान्यता
पंडित श्याम पंचोली ने को बताया कि लोग प्राचीन वटवृक्ष का पूजन अर्चन कर पितृ शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. मान्यता है कि वट वृक्ष देशभर में सिर्फ चार जगह पर स्थित हैं. इसमें से एक उज्जैन के सिद्धवट घाट पर है. कहते हैं इसे माता पार्वती ने लगाया था. इसका वर्णन स्कंद पुराण में भी है. सिद्धवट पर पितरों के तर्पण का यह कार्य 16 दिन तक चलता है
गूगल से नहीं, तीर्थ पुरोहित से पूछो
तीर्थपुरोहित पं. श्याम पंचोली घोड़ी वाला पंडा ने को कि कोई भी जानकारी आप गुगल से प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन अपनी वंश बेल की जानकारी आपको गूगल नहीं बल्कि तीर्थ पुरोहित से ही लेनी पड़ेगी. हमारे पूर्वजों ने यह समृद्ध ज्ञान दस्तावेजों में दर्ज कर रखा है, इसे वंशावली कहते हैं. इसमें यजमान की पीढ़ी दर पीढ़ी के नाम दर्ज है, संबंधित कुल से कोई भी व्यक्ति तीर्थ पर आता है, तो उसका नाम उनके पिता, दादा, परदादा के साथ दर्ज कर लिया जाता है. यह परंपरा 200 साल से चली आ रही है.भावुक हो जाते हैं पिंडदानी
तीर्थ यात्री न सिर्फ यहां अपने गयापाल पंडे से पिंडदान श्राद्ध का कर्मकांड करवाते हैं, बल्कि वहां उनके पास बही-खातों में अपने पूर्वजों की विवरणी देखते हैं. अपने पूर्वजों के नाम देखकर वे खुशी से झूम उठते हैं. वह तब भावुक हो जाते हैं, जब वे अपने पूर्वजों के हस्ताक्षर देखते हैं, तब उनकी खुशियों का ठिकाना नहीं रह जाता है
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